नैना नीर भरे हों नूर भरे
नैना नीर भरे, नैना नूर भरे में बदलें यही मेरी भक्ति तथा आस्था है। प्रकृति स्वयं ही कर्म का पाठ पढ़ाएगी। जागृत चेतना स्वयं ही रास्ता दिखाएगी, दूसरों की चेतना को भी जगाएगी। दुख आता है बुद्धि का अंधकार मिटाने, बीमारी आती है शरीर का विकार मिटाने और जब प्रश्न आते हैं क्यों आती हैं त्रासदी दुर्घटना, विपत्ति और आपदा तो समझो आत्मा का अंधकार मिटाने की बारी है। जब-जब ऐसे प्रश्न उठते हैं तो सबको एकचित्त होकर, एकाग्रता और सच्चाई से, कि हम कहाँ गलत हुए, हल अपने अंदर ही खोजना है। यही सच्चा ध्यान लगाना या मेडीटेशन करना है। जैसे ही हमें अपनी गलती का अहसास होता है प्रकृति अवश्य मदद करती है दुख की निराशा को आशा में बदलने की, शरीर के आलस्य को कर्म में बदलने की और आत्मा के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश व भक्ति में बदलने की। यही प्रकृति माँ की उदारता है।…