हवन यज्ञ का विज्ञान प्रणाम बताए विधान-1

हवन अपने अंतर्मन के सभी विकारों को भस्म करने की वैदिक प्रक्रिया है। इस पद्धति में सभी उपचार पद्धतियाँ बहुत ही सुंदर रूप में समाई हुई हैं। मनोचिकित्सा, एक्यूप्रेशर, स्पर्श चिकित्सा, ध्यान, ज्ञान, प्रार्थना, भक्ति, विवेक, संयम, व्यवस्था इत्यादि का अद्भुत संयोजन है। विचारों और प्रक्रियाओं का बहुत ही सौंदर्यमय तालमेल है।

सत्य, प्रणाम की प्रमुखता है और हवन उसी का संदेशवाहक व प्रमाण है। सत्य की सच्ची साधना है जो सोचो वही बोलो वही करो। मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यमय होना। इसकी साधना का बहुत ही रुचिकर रूप है हवन। सत्य को समझने, सत्यरूप सच्चिदानंद से एकाकार होने की वैदिक पद्धति है हवन। हवन मन, शरीर व आत्मा के पूर्ण स्वास्थ्य की सीढ़ी है। मन व शरीर के सब विकार भस्म कर वातावरण शुद्ध कर आत्मशक्ति जागृत करने का उपाय है।

हवन में जो भी सामग्री प्रयोग होती है, वह सब प्राकृतिक सम्पदा वाली होती है, उनसे आयुर्वेदिक लाभ भी मिलता है। हवन में सबसे पहले सामग्री जुटाते हैं। तब यही ध्यान रहता है कि कोई विघ्न-बाधा न पड़े, बार-बार उठना न पड़े। सब सामान यथास्थान सुंदरता से संजो कर रखते हैं, स्थान भी साफ -सुथरा हो यही ध्यान रहता है। यही तो फेंगशुई – एक आधुनिक विदेशी पद्धति है जिसमें वस्तुओं को विशेष प्रकार से यथास्थान रखने के ज्ञान का व्यवसायीकरण कर दिया गया है।

हल्दी, रोली, आटे से अल्पना बना कर शुभसूचक चिह्न सजाकर हवन कुंड की स्थापना करते हैं। यह एक प्रकार से यंत्र-तंत्र बनाना ही है। यंत्र-तंत्र जो ब्रह्माण्डीय ऊर्जाओं को संतुलित व संगठित कर मनोनुकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं। कलश दीप नारियल आदि के रूप में जब सब देवी-देवताओं का आह्वान कर प्रतिष्ठित करते हैं, तो उन्हें पूर्ण भाव से याद करते हैं। रेकी आदि पाश्चात्य हीलिंग थेरेपियों में भी गारजियन ऐन्जिल्स को याद कर दिव्य ऊर्जाओं से सम्पर्क कर आह्वान करते हैं। हवन में प्रत्येक क्रिया का पूरा-पूरा महत्व व योगदान है स्वस्थ, सुंदर व सही जीवन विकास के लिए। जो सामग्री प्रयुक्त होती है वह केवल व्यक्तिगत अच्छाई व भलाई तक ही सीमित नहीं होती। दूसरों का, वातावरण का व प्रकृति के तत्वों का भी भला होता है।

कितना महान व सत्यपूर्ण था वेद बताने वालों का मस्तिष्क, जहाँ यह सोच पैदा हुई, ध्यान आया कि आग न होती तो कहाँ से ऊर्जा, तपन व गर्मी प्राप्त होती, अन्न स्वादिष्ट व पौष्टिक होता तो अग्नि का आदर-मान करें। घी, गुड़, वनस्पति जो हमें पौष्टिकता देती है उसका अर्पण होम अग्नि को करें। यह छोटा-सा भाव, छोटी-सी प्रक्रिया धीरे-धीरे कालान्तर में मंत्रों सहित आहुति देने की सुंदर हवन प्रक्रिया में विकसित हो गयी। धन्य हैं व नमन योग्य हैं वो ऋषि मुनि जिन्होंने अपने वेद-विज्ञान ज्ञान ध्यान से एक ऐसी पद्धति हमें दी जो कि सर्वकल्याणकारी है-
शरीर हुआ दीया, ज्ञान हुआ बाती,
सत्य का डला तेल जले दिन राती।
विकारों की आँधी से न बुझे ये जोत,
करना प्रभु ऐसे कर्मयोग से ओतप्रोत।


हवन में आम की लकड़ी के आठ-दस इंच के टुकड़े, घी, दूध, दही, शहद, मिश्री, फल, फूल, गंगाजल, कलावर, कपूर, हल्दी, चावल, आम के पत्ते, हवन सामग्री जो जड़ी बूटियों का मिश्रण होती है, धूप, दीया, अगरबत्ती आदि जरूरी सामान सजा हवनकुंड के चारों ओर आसन लगा कर बैठते हैं। हवन करने वाले का मुख पूर्व की ओर होता है, पहले लाल-पीला कच्चा धागा जिसे कलावर या मौली कहते हैं बाँधकर हल्दी-चावल से तिलक करते हैं। दोनों क्रियाएँ ही ऐक्यूप्रेशर की विधियों समान रोग निवारक हैं। पर इतना अंतर है कि इनमें रोग ही नहीं, आंतरिक चक्रों के जागरण व संतुलन की विद्या भी निहित है। कलाई पर विशेष बिन्दुओं पर दबाव डालकर तीन बार कलावर घुमाकर बाँधना, फिर तीसरे नेत्र पर चन्दन-रोली-चावल विशेष प्रकार से चक्राकार घुमा-घुमा कर लगाना ये सब आंतरिक शक्तियों का प्रवाह खोलने की ही विधियाँ हैं और हवन के लिए उपयुक्त पात्रता जगाने व तत्पर होने की भूमिकाएँ हैं।

  • प्रणाम मीना ऊँ

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