होगा वही जो प्रकृति को मंज़ूर होगा और प्रकृति को सिर्फ सत्य, कर्म और प्रेम ही मंज़ूर होता है। सत्य सुकर्म करने का ब्रह्मास्त्र है। सत्यवादी ही निडर होकर सत्कर्म को तत्पर होता है-
इतना बढ़े सत्य का तेज। हो सब विकृतियाँ निस्तेज॥
सत्य की तपस्या से अपने अंतर के भगवान को जगाना ही होगा। तुम सब भगवान हो पर जब तक भगवद् गुण प्राप्त कर दिव्यता धारण नहीं करते भगवान के अंशमात्र ही हो। भगवान, ईश्वर, अल्लाह, प्रभु के बच्चे ही हो। जैसे आदमी का बच्चा जब तक बड़ा होकर आदमी के गुण नहीं पा लेता बच्चा ही कहलाता है। प्रकृति ने सबको दिव्यता जगाने की क्षमता दी है यही प्रभु कृपा है।
सब कुछ त्याग कर ही मोक्ष मिलेगा यह धारणा सही नहीं है। मोक्ष का अर्थ है, मुक्ति व आज़ादी हर उस चीज से जो दुख का कारण है और आंतरिक आध्यात्मिक उन्नति में बाधक है। अपने रास्ते को दूसरे के रास्ते से अच्छा या बेहतर कहने वाले समाज को और मानवता को भिन्न-भिन्न अनुयायी व संप्रदाय बनाकर टुकड़ों में बाँटते चलते हैं। बाद में यही समुदाय गद्दी की सत्ता के लिए, सही नेतृत्व के अभाव में, आपस में ही टकराते हैं, लड़ते हैं और खून बहाते हैं।
रास्ता दिखाने वालों की कभी भी कमी नहीं हुई पर आज मानवता कहाँ खड़ी है सबको पता है। क्योंकि इंसान अपना सच्चा धर्म और कर्म भूल गया है। सोचता है किसी के आशीर्वाद से ही दु:ख कम हो जाए। मंदिर, मस्जि़दों में तोहफे चढ़ाकर लंगर बाँटकर थोड़ा-बहुत खर्चा- पानी भगवान के नाम पर कर, काम हो जाए। सितारों को दोष देकर, उन्हें सीधा करने में जो भी खर्च हो, कर ही दिया जाए। हमारी इसी मानसिकता ने मंदिर-मस्जि़दों को झगड़ने का मुद्दा बना दिया। करोड़ों की लागत से जितने रईसी ठाठ वाले पूजागृह बने हैं। यदि उनके स्थान पर स्कूल, अस्पताल व दरिद्र नारायण के छोटे-छोटे घर बनें तो सच्चा कल्याण हो। सब जानते हैं, चढ़ावे के नारियलों, चादरों और प्रसादों का क्या होता है। अंधों को फिर भी राह सुझा दो मगर जो जानबूझकर अंधे बने हैं उनको क्या कहें।
दूसरों की कृपा पर कितने दिन कटेंगे। श्रीकृष्ण की कृपा पर मौज उड़ाने वाले उन्हीं के वृश्नि वंश के लोगों का क्या हाल हुआ सब आपस में ही लड़ मरे, पूरा का पूरा वंश नष्ट हो गया। गीता जैसी महानतम प्रभु वाणी देने वाले श्रीकृष्ण के अपने ही राज्य में कर्महीनों का क्या हाल हुआ? भगवान उन्हीं की मदद कर सकते हैं जो अपनी मदद अपने आप करने का साहस व हिम्मत रखते हैं।
अब समय आ गया है कि अपने ऊपर काम कर शक्ति पाकर सत्य का साथ देने का। कब तक मुँह देखेंगे कि कोई और सुधार ले आएगा। अरे सच्चा गुरु तो हमारे अंदर ही बैठा हुआ है। हम अपनी जिंदगी बहानों पर काट देते हैं कि ऐसा हो जाए तो वैसा कर लेंगे। इसी चक्कर में कितने अनमोल क्षण गंवा देते हैं-
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगो कब॥
बहाना भी एक झूठ ही होता है। क्योंकि प्रकृति जानती है कि सत्य तुम्हारे अंदर ही छुपा हुआ है। स्वार्थपूर्ण दिमाग के अंधकार से ढंका है और तुम आलस्यवश उसे निकालने में असमर्थ हो। सत्य का रास्ता एकदम सीधा साफ शफ्फाक है। शुरू में समस्याएँ कठिनाइयाँ अवश्य आती हैं पर तपस्या समझ उन्हें सहर्ष स्वीकारना ही पूजा है। सत्य अपने आपमें सम्पूर्ण आराधना है। जो मानव मन-वचन-कर्म से सत्यमय हो जाता है उसकी मन की शक्ति से ही सब काम हो जाता है। इन तीनों का समन्वय स्वत: ही वाणी में सरस्वती जगा देता है। हम सब एक ही शक्तिस्रोत की उपज हैं तो फिर क्यों हम मेरे-तेरे अपने-पराए ऊँच-नीच में लगते हैं स्वयं को कर्ता समझते हैं। सत्यमय कर्ममय प्रेममय हो जाओ, प्रभु जो सबका कर्ता है उसके सेवक बनो, वह स्वयं ही कर्म कराएगा, ऐसा कर्म जो सबके लिए मंगलमय होगा।
सबसे बड़ा सत्य तो यही है कि अपूर्णता जाएगी ही पूर्णता के सामने, झूठ का विनाश होगा ही सत्य के सामने, और विनष्ट होने वाली हर चीज चाहे रिश्ते हों या संग्रह किया धन-दौलत, सबको जाना ही होता है अविनाशी परम शक्ति के सामने। यही प्रकृति का अटल सत्य, तथ्य व नियम है।
सत्य, कर्म और प्रेम से बड़ा कोई धर्म नहीं, कोई और राह नहीं। सत्य से बड़ी शक्ति नहीं। इस शक्ति को पाकर असत्य को नकारने में लगाने में बड़ी वीरता कोई नहीं- जो लड़े दीन के हेतु सूरा सोही।
जो सत्य धर्म के लिए लड़ें वही शूरवीर हैं। प्रणाम के योद्धाओं को हर बनावटी व दिखावटी चीज़ या नियम को अस्वीकारना ही होगा। समाज क्या कहेगा इससे भयमुक्त होना ही होगा। समाज का भय होता तो मीरा मीरा न होती कबीर कबीर न होते ईसामसीह फांसी न चढ़ते और श्रीकृष्ण गांधारी का श्राप शिरोधार्य न करते। हमें न तो नानक जैसे गुरु मिलते न गांधीजी जैसे युगदृष्टा कहाँ तक गिनाऊँ।
हर सच्चा इंसान प्रेमी इंसान अपने आपमें एक क्रांति ही होता है। एक प्रकाश की आग लिए होता है यदि हम उस प्रकाश से प्रकाशित हो प्रेरित नहीं होते तो हमारी ही कर्महीनता है। हमारा आलस्य ही हमें सत्य तक पहुँचने से उसका साथ देने से रोकता है। जिन्होंने सत्य-कर्म करना है वे तो भयरहित होकर करेंगे ही। आओ, सब मिल सत्य का साथ दें यही समय की मांग है।
सत्य ही आगे बढ़ेगा बाकी सब झूठ रह जाएगा
ऐसे ही तो सतयुग आएगा
कृष्ण चेतना वाला ही विश्व को जगाएगा
कृष्ण चेतना वाला होगा या चेतना वाली होगी। इस व्याकरण या भाषा भेद में प्रकृति नहीं पड़ती पर इतना अवश्य है कि प्रकृति के साथ स्त्रीलिंग शब्द ही प्रयुक्त होता है तो अब :-
जो मानव प्रकृति स्वरूप होगा वही चेतना आएगी
लाएगी प्रकृति का सत्यम् शिवम् सुंदरम् निर्झर
प्रतिपल बहाएगी गंगा की धार
प्रेम अपार सत्य का सार
कर्म का आधार प्रणाम हो साकार
करे जगत उजियार।
- प्रणाम मीना ऊँ