हे मानव ! कहां ढूंढ़ता है तू स्वर्ग। बड़ी प्रबल है तेरी स्वर्ग की इच्छा चाहे मर के मिले बस पाना ही है। तेरे काल्पनिक स्वर्गसम जीवन से अपेक्षाओं की कमी नहीं। एक दिवास्वप्न जैसी भ्रमित करने वाली मृगमरीचिका।
अरे प्रभु ने तुझे वह सब क्षमताएं प्रदान की हैं जिससे तू अपने व अपने सम्पर्क में आने वाले सभी जीवों के लिए स्वर्गसम वातावरण उत्पन्न कर सकता है। अपना स्वर्ग आप बना सकता है तो उठ अज्ञान की निद्रा से जाग पूरे पुरुषार्थ से कर्मरत हो जा। धरा को स्वर्ग बनाने की प्रक्रिया पहले अपने चारों ओर स्वर्ग बनाने से ही आरम्भ होगी।
प्रणाम बताए स्वर्ग सम जीवन की साधना का विधान :-
– सर्वोत्तम साधना : ध्यान योग व स्वाध्याय योग
– शिक्षा व ज्ञान की सच्ची सेवा संस्कार दान व माँ शारदे की विभूतियों-सत्य कर्म व प्रकाश का प्रसार
– सर्वोत्तम कर्म- प्रेममय प्राणों का विस्तार स्वर्गिक वातावरण की पहचान बनाने हेतु ध्यान रखना होता है
– पांचों विकारों ईर्ष्या द्वेष क्रोध लोभ मोह रहित स्थली।
– ऐसी शान्ति, जो निस्तब्धता नहीं, भयावह चुप्पी नहीं एक जीवंत शान्त मधुर ऊर्जा स्पन्दित आनन्दमय लयात्मकता पूर्ण वातावरण।
– मन उमंग भरा मस्तिष्क पूर्णतया चैतन्य आयुपर्यन्त नवीनता तरुणाई से भरपूर।
पूर्णतया भय रहित
– भूख प्यास व अन्य उद्वेगों की तड़प से रहित कोई भूख प्यास या आस से तड़पे नहीं, आस नहीं तो निराश नहीं। पूर्ण तृप्ति व संतुष्टि सत्य प्रेम व प्रकाश से आलोकित वास्तविक ज्ञान व विज्ञान जानने की ललक सदा विद्यमान।
कोई भी रोका-टोकी, दखलंदाजी नहीं न सवाल न बहस न हुकूमत न अनावश्यक आज्ञा या सलाह देना। केवल सतकर्म की प्रेरणा व निर्देशों का प्रवाह रहना। सभी अपना अपना कर्म पूर्ण मनोयोग से पूरी लगन से अपने अपने तरीके से करते हुए। कोई प्रशंसा करे या न करे सारे अपने में मगन अपनी ही व्यस्तता में व्यस्त कोई बेचैनी या उन्माद नहीं।
हे मानव !
तू पूर्णतया सक्षम है।
अपना स्वर्ग स्वयं बना ले
मृत्योपरांत किस स्वर्ग की कल्पना में खोया है तू
जाग जा! अपनी आत्मा की आवाज़ सुन, सत्य को जान
यहीं इसी धरती को स्वर्ग बनाने की साधना कर।
स्वर्ग साधने की साधना:-
– स्वर्ग साधने की अग्नि- सत्य ज्ञान जानने की अग्नि- अपने अंतर में सदा प्रदीप्त रखना।
अग्नि आहुतियों से ही सदा प्रज्ज्वलित रहती है। आहुतियां हैं, ध्यान द्वारा शुद्ध किए हुए अंत:करण से समस्त, ब्रह्माण्डीय ऊर्जाओं व शक्तियों का आह्वान और सभी कल्याणकारी भावनाओं – भावों – का आंतरिक ऊर्जा की, अग्नि रूप लपटों पर सारे अंतरिक्ष में विस्तारण प्रसारण यह भावाहुतियां हैं।
कर्माहुतियां हैं अपने अस्तित्व व संसार में अपने उद्देश्य – कारण – के सत्य को जानने की उत्कट जिज्ञासा व सतत साधना। स्वाध्याय सुसंस्कार दान-उदाहरण बनकर-व सर्वोत्तम सेवा दान प्रकृति की तरह बस देना ही देना।
– प्रत्येक सत्यमार्गी प्रेममार्गी कर्मयोगी को सहयोग सहभागिता भावभावित प्रार्थना या भावऊर्जा शक्ति देने की तत्परता की अग्नि सदा प्रदीप्त रखना।
– नाभि प्रदेïश से उदीप्त अग्नि तत्व का सतत् वेग ही सत्यता के लक्ष्य तक पहुंचाने का माध्यम बनता है। वो सत्य लक्ष्य, जो प्रभुता से योग करा, स्वर्गतुल्य जीवन का आधार है।
– स्वर्गिक आनन्द तपस्याओं, परीक्षाओं – कष्टों, दुखों – से मुक्ति का नहीं पर इनसे कैसे सानंद उबर कर मुक्त होना है सत्य ज्ञान का मोती बीनना है और मानव की अनंत क्षमताओं की अनुभूति का आभास है।
न कोई शंका न दुविधा न कोई प्रश्न न द्वंद स्वर्ग सम ऊर्जान्वित प्रदेश में सब सहज सरल ज्ञाना हुआ जाना हुआ। जीवन मृत्यु व मरणोपरांत के सभी रहस्य पूर्णतया उजागर हो जाते हैं। पूर्ण ज्ञान-परा व अपरा ज्ञान, आत्मज्ञान ब्रह्मज्ञान ब्रह्माण्डीय व अंतरिक्षीय वेद विज्ञान के आधार पर और सत्य की कसौटी पर कसकर जाने अनुभूत सत्य के आधार पर सभी कुछ तो प्रकाशित व भासित हो जाता है।
यही है वेद विज्ञान का निचोड़।
तथ्य व तत्व का योग
और यही है सत्यात्मा का सत्य
वेद विज्ञान का सत्य
यही सत्य है
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ