स्पष्टता व पारदर्शिता व्यक्ति की चेतना के विकास को दर्शाती है। यह मनुष्य की प्रगतिशीलता गहराई श्रेष्ठता विस्तार एवं एकाग्रता को विकसित करती है। यह मस्तिष्क शरीर और जीवन के सभी बंधनों को काटने से ही आती है। इसमें तभी वृद्धि होती है जब हम अपने अहम् के मकड़जाल से बाहर आते हैं और आत्म-प्रकाश के अनुभव लेना आरम्भ करते हैं। जब हम संसार में आत्मा की इच्छा व उद्देश्य को अनुभव करते हैं और एकात्म के चिन्तन में निमग्न रहते हैं तब हम पारदर्शिता के चरम बिंदु तक पहुँचते हैं। पारदर्शिता से ही हम अपने सत्य की खोज कर उसको जान सकते हैं, उसे पा सकते हैं।
कई पद्धतियाँ हैं जिन्हें नवयुग के आध्यात्मिक गुरुओं ने इस लक्ष्य के निमित्त बनाया है और विकसित किया है। परंतु इस प्रकार के जो भी नुस्खे हैं उनके लिए दृढ़विश्वास साहस लगन तथा आत्मसमर्पण की आवश्यकता होती है। यही एकमात्र शक्ति है जो मस्तिष्क को प्रकाशित कर सकती है, सत्य को प्रकट कर सकती है और अज्ञान के अंधकार को मिटा सकती है।
सृष्टि का उद्देश्य विकास है। शाश्वत सत्य का प्रस्फुटन ही तन और मन को परिवर्तित कर सकता है। यही सत्य पूर्ण वैश्विक व्यवस्था, Universel Mechanism, की प्रतिष्ठा व गरिमा को दर्शाता है। यह वेदों में पूर्ण की संज्ञा से वर्णित है। परम चेतना के अनुसार जीना ही केवल धर्म है। अपने अहम् की तुष्टि के लिए या दूसरों की इच्छानुसार कठपुतली बनकर न नाचना अत्यन्त कठिन कार्य है, परन्तु वास्तव में यही सच्ची साधना है। दैवी शक्ति का एक माध्यम बनना ही मानव का ऐसा कर्म है जो इस लोक में प्रेम और प्रकाश ला सकता है।
मानव-मस्तिष्क जो सदैव सक्रिय रहता है, अपने विवेक से वस्तुओं का विश्लेषण करता ही रहता है। जब आप सभी अज्ञानता को दूर करके पारदर्शिता के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तब आप अपने अहम् से दूर परम चेतना में रहते हैं। तभी परिवर्तन आरम्भ होता है आपके रोम-रोम में इस सत्य का प्रस्फुटन एवं विस्तार होता है। इस परम चेतना के अनुसार रहना और कर्म करना ही जीवन का नियम है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ