सुसंस्कारित होओ

हे मानव !
अपने को व अपने स्वभाव को जानकर अपने ऊपर काम करने की तपस्या कर यही सच्ची साधना है। बचपन से ही कुछ आदतें स्वभाव रूप में ढल जाती हैं और जाने-अनजाने ही मानव इसी स्वभाव के अनुसार अपने सम्पर्क में आने वालों के साथ व्यवहार करता है। इसका प्रभाव क्या होगा इसका उसे तनिक भी भान नहीं हो पाता। अधिकतर इन आदतों और इन संस्कारों का कारण माता-पिता और सम्पर्क में आने वाले सम्बन्धी ही होते हैं।

इन आदतों में प्रमुख हैं-
– दूसरों का पक्ष न समझना no consideration
– दूसरों के लिए विचारशील, संवेदनशील न होना no concern
– दूसरों के लिए करुणा का अभाव no compassion
– नखरे दिखाना snobbish
– दूसरों से क्या लाभ मिल सकता है सदा यही सोचना selfish
– दूसरों के लिए त्याग या प्रयत्न का नितांत अभाव!
no effort for adjustment no sacrifice
– किसी भी तरह दूसरों पर नियंत्रण control freak
– वातावरण व परिस्थितियों को सहज सरल व प्रफुल्लित बनाने की अपेक्षा तनावपूर्ण बना देना अपना अहम् व अपना प्रभुत्व दिखाने के चक्कर में।

यदि उपरोक्त आदतें स्वभाव में बिना जाने समा गईं हैं तो इनका ध्यान रखकर इनके ऊपर बहुत परिश्रम करना होगा। इन्हें पहचान कर इनके निवारण का दृढ़ निश्चय करने पर ही ये काम शुरू हो जाएगा और आत्मबल जागेगा। प्रभु परम कृपालु हैं बार बार अवसर देते हैं यह सब दिखाने व हटाने के लिए क्योंकि इन आदतों से छुटकारा पाने पर ही इनके विपरीत दैवीय गुण जागृत हो पाते हैं जो कि वास्तव में प्रभुता या बड़प्पन के लक्षण होते हैं। इन आदतों या प्रवृतियों में कब कब मानव रमता है, कहां कहां कमी रह जाती है, कहां कहां गलती हो जाती है यही जान पाना वास्तविक संवेदनशीलता है।

कई लोग अपनी बड़ाई या वर्चस्विता मनवाने के लिए नखरे दिखाते हैं हमें यह पसंद है ये नहीं खाना वो नहीं पहनना यहां नहीं जाना किसी किसी से चिढ़ है कोई बोर है आदि आदि। इस प्रकार अपनी अजीब अजीब सी आदतों का बखान शान से करना अंतत: दुखदायी ही होता है। जो लोग सदा किसी से या किसी भी स्थिति से क्या लाभ मिलेगा या क्या लाभ उठाया जा सकता है इसी जुगाड़ में रहते हैं उनका भी कल्याण सम्भव नहीं और न ही मानवता या समाज के उत्थान में उनका कोई योगदान हो पाता है।

ऐसे लोगों से प्यार बढ़ाओ या इन पर कुछ दया ममता व नम्रता लुटाओ ये उसे भी अपना हक समझकर दर्प और घमंड दिखाकर आपका उपयोग करने की ही सोचेंगे। और यदि आप पर नियंत्रण न कर पाएँया आप इनके मन की न कर पाएँतो बौखलाहट में उल्टी सीधी बातें करेंगे। क्रोधित होकर आप की कमियां गिना गिना कर आप पर ही दोषारोपण करने पर उतारू हो जाएंगे। कितना विषाक्त वातावरण बना देते हैं ऐसे लोग जो कहने को तो बहुत संभ्रांत पढ़े लिखे योग्य गुणी व शिष्टाचार वाले कहलाते हैं। इन संस्कारों से विहीन मानव कितनी भी भौतिक प्रगति कर ले अपूर्ण ही रहेगा कभी भी सुखदाई और कल्याणकारी वातावरण नहीं बना सकता। चाहे वो अपने को कितना ही अच्छा क्यों न जतलाए क्योंकि वाक्युद्ध में बड़े चतुर व सिद्धस्त होते हैं ऐसे प्राणी!

तो हे मानव!
उपरोक्त बातों का ध्यान रखना ही होगा यदि वास्तविक बड़प्पन – प्रभुता – में आना है तो। इन संस्कारों को केवल उदाहरण बन कर ही रोपित किया जा सकता है विशेषकर माता-पिता व गुरुओं- शिक्षकों को इसका बहुत ध्यान रखना होता है।

यदि यह संस्कार इनसे नहीं मिल पाएं तो स्वयं अपने पर काम करके या किसी सुयोग्य मानव के सानिध्य में रहकर इन गुणों को जागृत कर व्यक्तित्व को तेजोमय बनाने का पूरा प्रयास करना भी सत्य व प्रेम की साधना का ही रूप है।

यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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