साँचा गुरु सोई

मेरे तो गिरधर गोपाल…दूसरो न कोई…

सच्चा गुरु वही है जो सच्चा शिक्षक हो। जो ऐसा कुछ सिखलाए जो जीवन को उन्नत बनाए मानव होने का गौरव समझाए और उसका रास्ता बताए। न कि गुरुपद हथियाने के गुर सिखाए गुरुपन झाड़ने की युक्तियां सुझाए।

सही और सच्चा गुरु उदाहरण होता है कि मानव को अपना जीवन कैसे सार्थक बनाना है। पूर्णता से जीना है अपना जीवन उत्सव बनाकर अपने चारों ओर प्रफुल्लता फैला प्रसारित कर औरों को भी प्रफुल्लित करना है। सभी कुछ नि:स्वार्थ भाव से बस प्रवाहित ही प्रवाहित करना है। सही मार्गदर्शन देना है न कि अपना ही वर्चस्व बढ़ाने की विधियां बतानी हैं या कर्मकाण्डों में उलझाना है।

मन शान्त व बुद्धि स्थिरता के लिए सही आंतरिक विधियां ही बतानी है न कि बाहरी क्रियाओं की नई-नई विधियां ही सुझानी हैं। जब सभी जानते भी हैं और रटते भी रहते हैं कि जो कुछ भी प्राप्ति होगी वो अंदर से ही होगी तो बाह्य उपायों की बैसाखियों का
क्या औचित्य।

तो हे मानव जान ले यह सत्य! थोड़े समय तक अभ्यास के लिए बाह्य विधियां अपनाई जा सकती हैं जैसा चलना शुरू करने के लिए वाकर, walker, की सहायता ली जा सकती है पर जीवन भर वाकर के सहारे चलना कैसा रहेगा सोचो तो ज़रा!

सद्गुरु का धर्मकर्म : सूर्य की भांति सबको प्रकाशित करना है सही कर्म के लिए शक्ति देनी है। चंद्र की भांति कल्पनाओं और कलाओं को सौंदर्य की ओर उन्मुख करना है। वायु की भांति सही विचारों से सबको प्राणित करना है। धरती की भांति सद्गुणों-धैर्य सहनशीलता आदि से पोषित करना है।

अग्नि की तरह सभी अपूर्णताओं को भस्म करना है। आकाश की तरह हृदय विशाल बनाकर अहम् व कर्तापन रहित होकर असीमता का भाव जगाकर एकत्व की अनुभूति कराकर सभी का आश्रय व ऊर्जा स्रोत बनकर परम सत्य का दर्शन कराना है।

सच्चा गुरु केवल परम सत्य का प्रतीक होता है। ज्योति स्वरूप आनन्द शान्ति व प्रकाश का पुंज होता है। ऐसा पारदर्शी तत्व होता है जिसमें परम सत्य सत्चित्त का आनन्द-सच्चिदानंद परिलक्षित होता है।

तो जानो सच्चे गुरु को ध्याओ, सच्चे गुरु को सत्य से सच्चे होकर जुड़ो और अपने मानव अस्तित्व के सभी रहस्यों को जानकर सभी प्रश्नों संशयों दुविधाओं द्वेषों व क्लेषों आदि से उबर कर शंकारहित होकर सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के पूर्ण समर्पण में आकर जीवन को आनन्ददायी उत्सव में परिवॢतत करो यही है प्रणाम का सबको प्रणाम!
यही सत्य है !!
यहीं सत्य है
!!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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