हे मानव !
हम सब मानव हैं केवल मानव। हमें मानव बनना है, दूसरे मानवों के साथ कैसा व्यवहार करना है यह ज्ञात होना चाहिए। हमें यह अनुभव करना है कि हम सभी एक ही स्रोत से उपजे हैं और पांच तत्वों से बने हैं। धरती जल वायु अग्नि और आकाश। हमें अपने अंदर इन्हीं पांच तत्वों के गुणों को सींचना व विकसित करना चमकाना सुधारना व परिष्कृत करना है। उदाहरण स्वरूप-पृथ्वी का गुण है धैर्य, वे सभी को आसरा देती हैं चाहे वह संत हो या पापी।
वायु जीवन दायनी है। जल तत्व करुणा का प्रतीक है। आकाश सभी को सुरक्षा और सम्बन्धता का भाव, Sense of Belonging देता है। अग्नि हमारे भीतर सभी अपूर्णताओं को भस्म करती है और जैसे अग्नि की लपटें ऊपर की ओर उठती हैं वैसे हम सब भी उगें और ऊपर की ओर उत्थान करें।
बहुत सारे धर्म और धार्मिक पंथ हैं जो एक दूसरे से लड़ रहे हैं। यह सोचकर कि दूसरे धर्मों के लिए जगह ही नहीं है। ऐसे लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि पृथ्वी पर सभी के लिए जगह है, सभी का अपना-अपना महत्व है। अगर हम मानवता को उसके निर्मल स्वरूप में जीवित रखना चाहते हैं तो हमारे जीवन का लक्ष्य दूसरों को मारना नहीं हो सकता। सभी को यह अनुभूति होनी चाहिए कि हम सभी पांच तत्वों से ही बने हैं। जब सभी यह सत्य आत्मसात् कर लेंगे तभी हिंसा का ताण्डव बंद होगा।
- प्रणाम मीना ऊँ