सबसे बड़ा आश्चर्य

सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि जब पराशक्ति मानवों को अपने ही बनाए हुए चक्रव्यूहों से निकालकर किसी महान उद्देश्य की ओर इंगित व अग्रसर करने के लिए सत् संकल्प किसी एक उन्नत मानव के अन्तर, inner being, में प्रस्फुटित करती है तो भावानुसार वैसे ही कुछ मानवों को भी अवश्य ही तैयार कर लेती है जो स्वेच्छा से स्वत: ही योगदान को तत्पर होते हैं।

जो परमबोधिनी शक्ति सत्य को अवतरित करती है वो ही उसे पूर्णता तक पहुँचाने के माध्यम भी कालानुसार जुटा देती है। इस संदर्भ में शास्त्रानुसार शक्ति बल बुद्धि और दृढ़निश्चयी हनुमान जी और अर्जुन जैसे निद्राजयी महाबाहो एक लक्ष्यधारी जैसे प्रतीकात्मक स्वरूप मानव तो हर युग में हर अवतारी के साथ होते हैं। यही विधि का विधान है मानवों को प्रकाशित कर सत्यता का मार्ग प्रशस्त करने का, संभवामि युगे-युगे का।

जहाँ तक भी प्रणाम के पाँचजन्य – प्रणाम संदेश – का शंखनाद पहुँचे, सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश का संदेश पहुँचे लोग मन से भावनात्मक रूप से, बुद्धिसे ध्यान व चिन्तन रूप से और अन्तरात्मा से सत्चित्त आनन्द रूप से प्रणाम प्रवाह में जुड़ें और स्वर्णिम नवयुग की ओर अग्रसर होने का मार्ग सुनिश्चित करें। यही प्रणाम की भावपूर्ण प्रार्थना है।
यही है सत्य
यहीं है सत्य

  • प्रणाम मीना ऊँ

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