तुम कौन?… सत्य
कैसे मानूं?… अनुभव करो
अनुभव कराओ…
अनुभव करने के पुरुषार्थ की क्षमता
प्रकृति ने सबको
दी है।
जानो अपने सत्य
से,
पर जान लेने पर
केवल सत्य के लिए और
सत्यमय होकर ही
जीना होता है।
- प्रणाम मीना ऊँ