सत्य मार्ग प्राकृतिक मार्ग – माना मार्ग

लहू का रंग एक है अमीर क्या गरीब क्या,
बने हो एक खा$क से तो दूर क्या करीब क्या !

आओ, सब मिलकर तय करें कि एक मार्ग मानवता का, इंसानियत का ही माना जाए तो क्या यह मंजूर होगा सबको। नई किताब इंसानियत की, नई नीति सरल-सी। नया धर्म जो सब धर्मों का निचोड़ है, सत्य, प्रेम और कर्म, चाहो तो उसे माना मार्ग कह लो। माना का अर्थ है, जो सबको मान्य होगा और मान्य होना चाहिए क्योंकि इसमें बंधन नहीं है, एक मार्ग है एक रास्ता है, जिस पर चलते चलो। चलने का भी आनन्द और पाने का भी आनन्द और पाना-खोना क्या जब सारा सफर ही सुहाना हो जाएगा।

जो लोग इंसानियत को नकारते हैं वही लड़ेंगे-मरेंगे कि मेरा धर्म तेरे से बेहतर है। अगर यही रवैया रहा तो अंत में किसी का भी भला नहीं होने वाला। जिनको लड़ने-लड़ाने से मजा आ रहा है उन्हें समय कभी नहीं बख्शेगा। राम रहीम सब उदाहरणस्वरूप हुए, उन्हें मानो उनके दिखाए रास्ते पर चलो और कुछ सुंदर जोड़कर नया कुछ अच्छा तो करो। उनके नाम पर ख़्ाूनख़्ाराबा क्यों? ये तो तुम्हारे ही मन के फोड़ों का मवाद है जो बह रहा है। गंदगी और बदबू फैला रहा है।

क्यों सड़ा लिया अपने मन व बुद्धि को? क्या मिलता है मंदिर, मस्जि़द तोड़कर? पुरानों का आदर करो। हाँ नए बनवा कर अपना-अपना महत्व जताना मूर्खता है। प्रकृति की कृति मानव को, इंसान को छत मिले, भावी पीढ़ी को अच्छी खुराक मिले, सच्ची शिक्षा मिले, इसका प्रयत्न करना ही धर्म है। जो लोग किसी धर्म विशेष को मानते हैं, उनसे मुझे कोई भी शिकायत नहीं। जिसको जो भी धर्म ठीक लगता है, उसे माने और उसमें ही शान्ति प्राप्त करे। यही सत्य है मगर जब धर्मों का प्रदर्शन एक दूसरे से स्पर्धा करने में या एक दूसरे को ऊँचा-नीचा दिखाने में किया जाता है तो वह धर्म की सच्ची साधना व भक्ति नहीं है। ईसा, मूसा, राम, रहीम, कृष्ण सबको अपने-अपने समय में आलोचना भी सहनी पड़ी। बाद में उन्हें भगवान बनाकर उनके नाम पर ग्रंथ रच कर पूजास्थल बना दिए काम तो अच्छा किया गया पर समय के गुज़रने पर असली बात भुला कर भ्रष्टाचार के अड्डे बना दिए। धर्म के नाम पर जगह हथियाना, गद्दियाँ व अखाड़े बनाना, अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए जनता को मूर्ख बनाना कहाँ का धर्म है?

बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाय।

दुनिया की अदालत में तर्कों द्वारा झूठ को सच सिद्ध कर सकते हो पर मन मंदिर के आगे कोई तर्क काम न आएगा। सब में कुछ न कुछ अच्छाई होती ही है। बुराई में भी अच्छाई है कि हमें बताती है, यह नहीं करने योग्य है, इसे छोड़ना है। सब इंसानों में उस सर्वव्यापक नूर का ही प्रकाश है, उसे ही उभारना है, सामने लाना है, उपयोगी बनाना है, दिलों को मिलाना है। प्यार व आदर कोई खरीद नहीं सकता। यह एक ऐसा शक्ति देने वाला तत्व है कि मानव असम्भव शब्द भूल जाता है। प्रेम सर्वशक्तिमान है।

मानव-मात्र से प्रेम, सौंदर्य-पूर्णता से प्रेम, प्रकृति माँ से प्रेम, ब्रह्मा पुरुष ईश्वर से प्रेम, जो समय ने दिया उस कर्म से प्रेम यही माना हुआ ‘माना मार्ग है। सत्य, कर्म और प्रेम का रास्ता जिस पर सबको चलना है, अपने-अपने धर्म विशेष की शक्ति को हृदय में बसाए हुए। सब धर्मों को प्रणाम है। क्योंकि जिन्होंने भी वह बनाए वह उस समय की मांग थी और रास्ता दिखाने के साधन थे। आज उन्हीं का रूप इंसान ने अपनी अपनी बुद्धि से बदल दिया है। कोई बात नहीं समय बड़ा बलवान होता है। सत्य को कोई नहीं रोक सकता, वह अपना रास्ता बना ही लेता है यही सनातन, सदा रहने वाला चलने वाला धर्म है। सत्य, प्रेम और कर्म ही सनातन धर्म है, इंसान का। झूठ को जाना ही होता है। सत्य के सामने चाहे जितने भी असत्य के पत्थर आ जाएँ, उसकी धारा रुकती नहीं। यही माना मार्ग है, जो भी चाहे चला आए, इस मार्ग के रास्ते में कोई बंधन नहीं, कोई नियम नहीं, बस एक ही नियम-
यह तो घर है प्रेम का, ख़्ााला का घर नांहि,
सीस उतारे भुई धरे सो पैठे इहि मांहि।

यह तो प्रेम का घर है अहम् का शीश काटकर जमीन पर उतार दो तो आओ।
यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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