सृष्टि की उत्पत्ति में लय होना
उसके साथ उगना और उसकी मानसिक स्थिति को जानना
ब्रह्म बोधि व ब्रह्म गति को प्राप्त होना
बीज रूप से देखना अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को
बीज जो कि सब गुण अपने आप में समाए हैं
एक बीज से सैकड़ों-हज़ारों फल
पाए जा सकते हैं
पर हजारों फल धरती में दबा दो
एक बीज पैदा नहीं कर सकते
बीज आया कहाँ से
कैसे सदियों के विविध विधान से बन गया
सिर्फ प्रकृति जानती है या जानता है वह बीज
यह बीज, ष्द्गद्यद्य, कोषाणु सारा का सारा रहस्य
सारी की सारी सूचनाएँ अपने में समाए हुए है
मीना बन गई है वह बीज
प्रकृति का बीज स्वरूप
पर प्रकृति से परे नहीं हूँ
प्रकृति का मन बुद्धि कर्म
आत्मा की पूर्ण अनुभूति
अपने आपमें समाए हुए हूँ
प्रकृति की अनुकम्पा से मिली वाणी
संसार से मिला ज्ञान
ताकि बता पाऊँ ऊँ इस अनुभूति को
पर लोगों के अन्दर इसे जानने की
समझने की मानने की इच्छा जागेगी तो
उसी परम प्रकृति की कृपा से ही न
जब कहा कृष्ण ने गीता में
सबके बीज में
प्रकृति के मूल कारण में
मैं ही हूँ
मैं ही कर्ता मैं ही कारक
तो मुस्करा उठता है मन मेरा
इस बात को
मुझसे अच्छा कौन जानता है
मैं जी रही हूँ
इस बीज की सत्यता
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ