सत्य

सत्य था है और सदा सत्य ही रहेगा।
तन मन आत्मा का सत्य। विचार वाणी कर्म का सत्य।
सत्य सबका आधार है सत्य किसी पर निर्भर नहीं। सत्य ही सत्य तक किसी बाहरी शक्ति के बिना सहज स्वत: ही पहुंचता है। यही सत्य की शक्ति है। सूर्यमुखी प्राकृतिक रूप से ही सूर्य की ओर उन्मुख होता है।

सत्य को कभी ढूंढ़ा या छोड़ा नहीं जा सकता।
सत्य को सत्य होकर ही पाया जा सकता है।
सत्य ही सत्य है :-

स्वीकार करो या न करो
अनुभव करो या न करो
पहचान करो या न करो
प्रशंसा करो या न करो
ग्रहण करो या न करो
अनुसरण करो या न करो
उपासना करो या न करो
उपदेश दो या न दो
मन वचन कर्म एक ही सत्य से संचालित हों।
जो सोचें वही बोलें वैसा ही कर्म करें-

यही सत्य की अनुपम साधना है !
मनसा वाचा कर्मणा सत्य होना ही सत्य है।
सत्य निरन्तर उत्थान है
प्रगतिशील गतिशील मुक्तात्मा का गुण है।
सत्य को बुद्धि से जानकर विवेक जगा लेना
बोधिसत्व स्थिति का भान है।
सत्य चित्त आनन्द को प्रणाम है !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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