सतस्य सत्यम् – सत्य का सच

सतस्य सत्यम् – सत्य का सच

हे मानव !
सत्य का तेज करे सभी कुवृत्तियाँ निस्तेज। सत्य ही सुकर्म की शक्ति है। सत्य सुदर्शन चक्र है झूठ को काटने का ब्रह्मास्त्र है। यह भी सत्य है कि कोई कितना ही महान क्यों न हो अंतत: अकेला ही रहता है। अर्जुन जिसको श्रीकृष्ण ने मानव जीवन का ज्ञान-विज्ञान गीता के रूप में दिया वह भी युद्ध जीतने के बाद अपने परिवारवालों के साथ ही गया।

अब समय आ गया है कि मानव यह सत्य समझे कि अपने ऊपर ही काम करना होगा। कब तक मुँह जोहेंगे कि कोई और सुधार लाएगा। अरे सत्य का सद्गुरु तो अंदर ही बैठा है। हम जीवन बहानों और प्रतीक्षाओं में निकाल देते हैं कि ऐसा हो जाए तभी वैसा कर पाएँगे। बहानों के झूठ पर अनमोल क्षण गवां देते हैं। प्रकृति जानती है कि सत्य तो तुम्हारे भीतर ही है जो अहम् और कर्महीनता के अंधकार से ढका हुआ है। सत्य का मार्ग सीधा व सरल है। एक बार दृढ़निश्चय कर लेने पर कुछ कठिनाइयाँ व समस्याएँ अवश्य आती हैं पर उन्हें साधना व तपस्या की तरह सहर्ष स्वीकारना व कर्म करना ही सच्ची पूजा-अर्चना है। सत्य अपने आप में पूर्ण आराधना है जो मानव उत्थान का एकमात्र उपाय है। जो मानव मन, वचन, कर्म से मनसा-वाचा- कर्मणा, एकरूप हो सत्य होता है उसकी आत्मशक्ति ही सुदर्शन चक्र जैसा कार्य करती है।

जो सोचो, वही बोलो, वही करो यही है सच्चा धर्म। इन तीनों का समन्वय स्वत: ही वाणी में सरस्वती जगा देता है। सत्य तो एक ही है हम सभी एक ही शक्ति स्रोत से उपजे हैं पर फिर भी अपने-पराए, तेरे-मेरे के फेर में उलझे हैं। कर्ता बनते हैं जानते हैं कि सत्य ही अविनाशी है और असत्य विनष्ट होगा ही यही प्रकृति के नियम का अटल सत्य है। सत्य, कर्म और प्रेम से बड़ा न कोई धर्म है न राह है हर बनावट पाखंड, ढोंग व दिखावट को नकारना तथा उसका भागीदार न बनना ही तो कर्म है। सत्य से शक्ति पाकर ही असत्य तथा अपूर्णता जहाँ कहीं भी दिखे उस पर भरपूर वार करना ही तो मानव का सच्चा धर्म-कर्म है-जो लड़े दीन के हेतु सूरा सो ही।

सत्य के योद्धाओं को अपूर्ण व्यवस्था अस्वीकार करनी ही होगी कोई क्या कहेगा इसका भय छोड़कर। किसी का भय होता तो मीरा, कबीर, ईसा न होते। झांसी की रानी न होती, न सुकरात जहर पीते। हर सच्चा व प्रेमयोगी कर्मठ इंसान एक क्रांतिकारी प्रकाश स्तम्भ ही होता है यदि हम उसकी अलौकिक ज्योति से प्रेरित हो, इंसानी धर्म नहीं निबाहते, सत्य का साथ नहीं देते तो यही कहना होगा- कर्महीन नर जीवत नाहीं।

सत्य ही आगे आएगा
झूठ का भरम मिट जाएगा
सत्य की शक्ति करोड़ों सूर्यों से भी तेजवान
प्रकाश से भी वेगवान
जो कर दे सम्पूर्ण सृष्टि उजागर
वह तेरे ही तो भीतर है ओ मानव
देख, समझ, पहचान धर कर ध्यान
नई आशा जगी है मन में
पूर्ण विश्वास है मानवता में
आएगा वह सवेरा जो होगा
सत्य प्रणाम के मन का बसेरा।


अब सत्य को एकजुट होना ही होगा। वैसे तो एक पूर्णतया सत्यमय मानव की आत्मशक्ति ही बहुत है रूपांतरण की धारा बहाने को सत्यमेव जयते की प्रामाणिकता सिद्ध करने को। क्योंकि अब ऐसा समय आ गया है जब झूठ ही झूठ को मारेगा और सत्य का मार्ग प्रशस्त करेगा बस हमें सुपात्र बनकर कर्म करते ही रहना होगा।
यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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