यह ध्रुव सत्य है। सच्चे मन की प्रार्थना में अपूर्व शक्ति और प्रभावोत्पादकता होती है। संयमी व्यक्ति यदि मन मस्तिष्क की सम्पूर्ण शक्तियों को केंद्रित कर श्राप दे या आशीर्वाद अवश्य ही फलीभूत होता है। मन की संकल्प शक्ति में अपार शक्ति है। शुद्ध अन्तरात्मा की आवाज की भविष्यवाणियां व शुभेच्छाएं दोनों ही सही होती हैं और यह हमारे सच्चे मन के अन्त: दर्शन व सम्पूर्ण ज्ञानमय तत्बुद्धि युक्त मस्तिष्क की देन है। ज्ञान ध्यान तत्बुद्धि, तत्व ज्ञान युक्त मस्तिष्क ही सही समय पर सही कर्म को तत्पर होता है।
यही प्राचीनतम वैदिक धर्म का निचोड़ है। हमारी समृद्ध परम्परा है जीवन को सृजनात्मक व पूर्णता की ओर ले जाना। सम्पूर्ण प्रस्फुटित व्यक्तित्व में ढलने का कर्म भी धर्म ही होता है। यह सर्वथा सत्य है कि हमारा मानव शरीर यंत्र प्रकृति माँ की अलौकिक देन है। इसका नियंत्रण, रिमोट कंट्रोल भी प्रकृति और मानव शरीर में ही है। जैसा मन और मस्तिष्क का आपसी संतुलन होगा वैसा ही शरीर का व्यवहार, कर्म होगा। इस सत्य के प्रति हमें संपूर्णता से विश्वास जागृत करना है तभी हम ईश्वर से साक्षात्कार कर सकते हैं। सत्य के प्रति पूर्ण समर्पण एक निश्चयवाली, प्रभु प्राप्ति की बुद्धि ही सही कर्त्तव्य कर्म की प्रेरणा देती है जो आनंद प्राप्ति का सही मार्ग है।
आत्मा का निरंतर विकास हो यही कार्य प्रभु ने हमें सौंपा है। यह तभी संभव है जब आधारभूत मूल्यों सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के आधार स्तम्भों पर उन्नत समाज का भवन निर्मित हो। सत्य, कर्त्तव्य कर्म प्रेम साहस निर्भय क्षमा सेवा आदि ही मानवता की निरन्तर प्रगति के नींव के पत्थर हैं। धर्म सम्मत व्यवहार ही पूजा है। बाकी सब ढोंग आडम्बर पोंगापंथी और धर्मांधता है। समाज को निष्क्रिय बनाने का कारण है। इस कारण सदा सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश का मार्ग ही अनुकरणीय है।
- प्रणाम मीना ऊँ