सच्ची विद्या केवल तकनीक नहीं

कोई भी विद्या जब तकनीक बन जाए और सब बिना विशेष प्रयत्न किए प्रयोग करने लगें, मनचाहे ढंग से उसका उपयोग करने लगें, विशेषकर स्वार्थी या व्यवसायी मनोवृति के हिसाब से तो उसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है।

जिस विधि से किसी को कुछ प्राप्ति होती है यदि वो उसे ही तकनीक बनाकर सिखाने लगे तो उससे कुछ भी प्राप्ति नहीं होने वाली। इसलिए यह अतिआवश्यक है कि पहले सुपात्र बना जाए फिर तकनीक केवल सहायता के लिए बताई जाए क्योंकि तकनीक कभी भी गारंटी नहीं है कि ऐसा करने से प्राप्ति हो ही जाएगी।

तकनीक को ही दुहराए जाने से कुछ प्राप्ति हो जाएगी ऐसा लोगों को केवल भ्रम ही है और उनके इस भ्रमित मन का लाभ उठाकर कुछ व्यापारी गुरु स्वामियों ज्योतिषाचार्यों कर्मकाण्डी पंडितों आदि की दुकानें खूब चल पड़ी हैं। आज तरह-तरह की विधियों को नए-नए नाम देकर अज्ञानी जनता का शोषण बखूबी होता है। तो हे मानव ! पहले तो तुझे यह समझना ही होगा कि जो कुछ भी मिलना है या प्राप्ति होनी है वो तुझे अपने अंदर से ही मिलेगी बाहर से कुछ भी नहीं मिलने वाला।

तू एक सच्चा खरा इन्सान बनने की सोचना ही शुरू कर दे, अपने सच को समझना ही शुरू कर दे, सामने आए प्रत्येक कार्य को कर्त्तव्य-कर्म समझ पूर्ण मनोयोग से पूजा अर्चना की तरह करना शुरू कर दे तो काम बनना शुरू हो जाए। इसमें कहां किसी तकनीक या बनावटी आशीर्वादों की जरूरत है।

सच्चा गुरु केवल मार्गदर्शन देगा, अपने को कैसे जाना जाए, अपने पर कैसे काम किया जाए केवल यही ज्ञान बताएगा, इसी की विधि सुझाएगा, झूठे आश्वासन या कर्मकाण्डी विधियां कभी नहीं बताएगा।

तो सच को जान
अज्ञान का अंधकार काट
कर्मकाण्डी तकनीकों के चक्रव्यूहों से
बाहर आ
सत्य, प्रेम व कर्म का प्रकाश देख
अंतर का आकाश देख
प्रभुता का प्रताप देख
देख देख देख देख
जिसे तू ढूंढ़ रहा बाहर
वो तेरे अंदर ही तो है
यही है सत्य
यही है सत्य

  • प्रणाम मीना ऊँ

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