हे मानव ! पूरे मनोयोग से किया नित्य कर्म संसार धर्म का कर्म और कर्त्तव्य कर्म, जो सदा परम सत्ता को पूजा अर्चना की तरह फलेच्छा रहित हो समर्पित किया जाए वही निष्काम कर्म है। निर्मल पवित्र शुद्ध कर्म है कर्म बंधन काटने का मर्म है। कर्म बंधन निष्काम कर्म से ही कटते हैं।
सम्पूर्ण भक्ति भाव से परम चेतना को अर्पित कर्म, यज्ञ समान है, उच्चकोटि के तप समान है जिससे मानव का सम्पूर्ण अस्तित्व पूर्ण परिष्कृत हो उत्कृष्टता को प्राप्त होता है। मानव चेतना पूर्ण विकास पाकर परम चेतना से संयुक्त, योग होती है।
अंतर्मन पूर्णतया दोष रहित होकर हीरे की भांति चमकदार व पारदर्शी हो जाता है। जिसमें सारे ज्ञान विज्ञान, सारे ब्रह्माण्डीय व अंतरिक्षीय रहस्य, जीवन रहस्य, मानव अस्तित्व रहस्य उजागर हो जाते हैं। मन के सभी द्वंद व प्रश्न उत्तरित हो शान्त हो जाते हैं, असीम कृपा का अनुभव होता है। अपरिमित कृपा वैराग्य शान्ति का अनंत विस्तार अनुभूत होता है :-
एकत्व का वास्तविक भान होता है
प्रभु तत्व के सत्व का
सत्य जान लिया जाता है
यही तो सबसे सच्चा
सबसे पवित्र
सर्वश्रेष्ठ नाता है
जो मीना के मन भाता है
जय दुर्गति परिहारिणी
दुर्गे अम्बे मैया
आह्वान करे कृष्ण कन्हैया
योग पूर्णता व शक्ति का
कर्मठता व भक्ति का-करे अपूर्णता संहार
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ