जितना शुद्ध होगा शरीर अंदर बाहर से उतनी
संवेदनशीलता बढ़ती है।
सबसे पहला पाठ यही है।
पहले
तन शुद्ध कर
मन शुद्ध कर
मस्तिष्क शुद्ध कर
तभी प्रभु कृपा से ज्ञान आएगा इस मानव तनधारी शरीर में।
अशुद्ध मन वाला अशुद्ध शरीर, विषाक्त शरीर कैसे करेगा
अमृत पान
पी प्रेमामृत
बन बालक प्रभु का
हो मनसा वाचा
कर्मणा सत्य
- प्रणाम मीना ऊँ