हे मानव! शब्द के सार से ही संचालित है समस्त संसार का व्यवहार, इसकी महिमा जानकर जीवन सुधार। एक-एक शब्द में संसार समाया है। एक भावपूर्ण प्रेममय शब्द में असीम शक्ति निहित है। आज विज्ञान भी शब्दों की ध्वनि व भाव से उत्पन्न कम्पन गति (वाइब्रेशन) का सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होने को मान रहा है। हमारे वैज्ञानिक ऋषियों ने सदियों पहले इसी ऊर्जा का ध्यान द्वारा अनुभव कर मंत्रों की कुंजियाँ हमें प्रदान कीं। जो भी शब्द नकारात्मक या सकारात्मक भाव से ब्रह्माण्ड में उछाल दिए जाते हैं वे वैसी ही सुगति या दुर्गति हमें लौटाते हैं। यहां तक कि विचारों में भी सोचे गए शब्द यही प्रतिक्रियाएँ आकर्षित करते हैं।
अच्छा, मधुर, सबका शुभ करने वाले शब्दों का प्रसार मुख, मन व मस्तिष्क से करो तो प्रकृति भी उसे द्विगुणित कर प्रसारित करती है। एक से अच्छे विचारों व शब्दों वालों की एक अनदेखी संस्था होती है चाहे उनका आपस में सम्पर्क न हो। ऐसे मनीषी हर युग में होते हैं जो शुभ शब्दों की तरंगों का एक ऐसा नित्य निरंतर रेला बना देते हैं जो सच्चे साधक तक पहुँच कर मनोवांछित प्रभाव उत्पन्न कर ही देता है चाहे इसे बुद्धि न जान पाए। यह संयोग कदापि नहीं है वरना श्रीकृष्ण को अर्जुन व नानक जी को बाला मरदाना कैसे मिलते?
अब एक इतनी गहरी बात श्री नानक जी की देेखें-नानक नाम चढ़दीं कलां इसदे भाने सर्वत दा भला। प्रभु के स्मरण मात्र से मानव की आंतरिक कलाओं का विकास भी शनै: शनै: पूर्णता को प्राप्त होता है और सबके भले का कारण बनता है। भाने यानि भानु सूर्य की भांति इसी बहाने से शब्दों के माध्यम से प्रकाश फैलाता है। शब्दों का यह एक बड़ा ही सौंदर्यमय रहस्य है। शब्द चाहे कितने ही संसारी क्यों न हों, उसे मन में एक परम शक्ति को संबोधित कर प्रयोग करना जैसे सामने प्रभु हों और सुन रहे हों यदि यह कला साध ली जाए तो आनन्द स्रोत खुल जाता है। तो जो भी बोलो पुकारो या गाओ मन में प्रभु भाव रखकर उसे ही अर्पण करने की तपस्या ही शब्दों की महिमा का सत्य उजागर कर देगी। मन की सारी सलवटें निकल जाएँगी। मन के कपड़े की सलवटें ही तो निकालनी हैं कबीर जी की तरह ताना बाना कसकर मन की खड्डी पर। तभी तो हर कार्य आनन्द का रज बन पाएगा।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ