हे मानव ! तू केवल मैं होकर रह गया है। मुझे क्या मिलेगा मुझे क्या नहीं मिला मुझे पूछा नहीं मैं बोर हुआ मुझे अच्छा नहीं लगा मेरा क्या होगा आदि-आदि। इस मैं मैं को मुझसे क्या-क्या दिया जा सकता है क्या-क्या अर्पण हो सकता है इसमें बदल।
अपने अवचेतन मन में और स्वार्थी बुद्धि में एकत्रित अनर्गल अनर्थक व निरर्थक शब्दों स्मृति चिन्हों चित्रों और रूढ़िवादी मान्यताओं को मिटा डाल। शब्द शक्ति प्राप्ति हेतु असत्य पाखंडपूर्ण स्वार्थी व छलपूर्ण बुद्धि विलास जो कि मानव उत्थान में गतिरोधक है उन्हें तिरोहित कर। सही इन्सान बनने हेतु उच्चरित शब्दों का महत्व जान और अपनी वाणी संवार।
प्रत्येक शब्द को परम कृपा का प्रसाद जानकर ध्यान व श्रद्धा से प्रयुक्त कर। प्रत्येक शब्द अपने आप में एक मंत्रवत शक्ति संजोए रहता है। सकारात्मक सुन्दर शब्द चारों ओर सकारात्मकता व सौन्दर्य ही प्रवाहित करते हैं। जैसा सुना समझा वैसा का वैसा ही बिना किसी लाग लपेट के कह देना भी शब्द साधना है। गप्पबाजी, ज्ञान बघारने अपनी बात मनवाने या प्रभावी बनाने के लिए अधिक से अधिक बड़े-बड़े शब्दों को उछालना शब्दों की सात्विकता व दिव्यता के साथ अन्याय है। देखा सुना व गुना ज्ञान सत्य सरल व मधुर शब्दों में बता देना शब्दों की सेवा ही है।
सत्यम् वद:
प्रियम् वद:
हितम् वद:
सत्य कहना प्रिय कहना और सबके हित या कल्याण की कहना इसी में शब्दों की सार्थकता है। व्यंगबाजी ताने या किसी को हीन बताने की चेष्टा में प्रयुक्त शब्द कुरूपता ही उपजाते हैं।
चारों ओर का वातावरण और पर्यावरण भी शब्दों के जाल में उलझ गया है। इतना शोर व्याप्त हो गया है कि मानव को तनावों और कुंठाओं में जकड़ शान्ति सहनशीलता और मधुरता से वंचित कर उग्रवादिता की ओर धकेल रहा है। गलत असुन्दर शब्द कितनी कुरूपता उपजा रहे हैं, बदले व हिंसा की कुत्सित भावनाओं को उभार रहे हैं सर्वविदित है।
शब्दों की इतनी समृद्ध सम्पदा व मानव अस्तित्व की इतनी दिव्य पूंजी को व्यय भी तो ध्यानपूर्वक करना है। जो शब्द सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के प्रवाहक नहीं वो केवल प्रमादी बड़बड़ाहट व शोर हैं। शब्द को ब्रह्म जान मानव मन का मोती मान समझ…
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय
– कबीरदास जी
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ