मुझे जीवन में जो कुछ भी भासित होता है और अनुभव होता है, उसे ठीक से पाठ बनाने की आदत है। फिर मैं इन पाठों में जोड़ती रहती हूं। जब भी मुझे कोई अन्य विषय वस्तु मिलती है या मैं स्वयं कुछ अनुभव करती हूं। इसलिए मेरे पास जीवन के कई पहलुओं पर मेरे अपने लिखित पाठों की अपनी लाइब्रेरी है जो मेरे स्वयं के संदर्भ के लिए मेरे मस्तिष्क में है। केवल मैं इसकी सूचकांक संख्या जानती हूं कि इसे कैसे संचालित करना है और अपने ध्यान से सही समय पर सही संदर्भ निकालना है।
कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं इस आधुनिक युग में एक विलुप्त प्रजाति हूं, क्योंकि कोई भी यह विश्वास नहीं करता है कि इस भौतिकवादी दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति विद्यमान है। मेरे चित्त-मानस को कोई भी कुछ दिनों में नहीं जान सकता। वे मेरे इतनी सारी विधाओं पर आश्चर्य करते हैं। जितना वो मेरे बारे में जानना चाहते हैं उतना ही अधिक वो भ्रमित हो जाते हैं। मैं हमेशा उनके लिए एक रहस्य हूँ। लेकिन मैं अपने बारे में भ्रमित नहीं हूं। मैं काँच की तरह साफ हूं, केवल अन्य लोगों को काँच जैसा स्पष्ट शुद्ध और शांत होना पड़ेगा। मुझमें अपने सत्य का और मानव की सामर्थ्य का प्रतिबिम्ब देखने के लिए।
‘सत्य की दृष्टि, समृष्टि जो सब जाने देखे बूझे समझे सबका सत्य’
यही सत्य है !!
– प्रणाम मीना ऊँ