मेरा तेरा एक ही प्राण

झूला जरा धीरे से झुलाओ
ओ सांवरिया
प्रभो तुम ही तो भेजते हो जगह-जगह
क्यों कृष्ण क्यों
जगह-जगह फिराए तुम्हारा विरह
जो भी काम कराने हैं
जिनके भी कर्म धुलवाने हैं
ज्ञानचक्षु खुलवाने हैं
तुमने मेरे कदम वहीं पहुँचाने हैं
क्यों चुन लिया मुझे ही
यही तो बात है मीना के मुस्कुराने की
अन्तर में दर्द छुपाने की
दिल में अपार विरह
ऊपर मनोहारी मुस्कान
करे निसदिन तेरा गुणगान
प्रभो न देना अभिमान
मेरा तेरा एक ही तो प्राण
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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