मिट्टी का एक कण खाक का इक ज़र्रा मीना
रास्ता भी यहीं, मंजिल भी यहीं
सारी तालाशें खत्म हो गईं
रास्ता ही मंजिल बन गया
मंजिल ही रास्ता बन गई
मीना न कहीं गई, न आई
न आई न गई
यहीं की थी यहीं रही और यहीं रह गई
मिट्टी मिट्टी में मिल गई
कोई कर्मयोगी कोई प्रेमयोगी कोई सत्ययोगी
फिर छान लेगा इस मिट्टी को
और ढूँढ़ ही लेगा मीना को
मीना के होने को
उसके जीने को, उसके मरने को
उसके तुम में समाने को
खाक के खाक हो जाने को
तुम्हीं तुम तो हो सब जगह
सब तरफ ओ मेरे मन
ओ मेरे मन मोहना
यही सत्य है !!
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ