हे मानव!
अपने मानव होने की महत्ता जान, यदि मानव होने के आनन्द की अनुभूति इसी जीवन में एक बार भी न कर पाया तो मानव जन्म व्यर्थ ही गंवाया, जानवर की तरह चुक गया। मानव को प्रकृति ने तीन गुण अपने से अधिक दिए हैं क्योंकि प्रकृति किसी के लिए रुकती नहीं। मानव रुक सकता है इसीलिए मानव को बुद्धि दी ताकि इन तीनों गुणों को विकसित कर चारों ओर मधुरता बिखेरे। पहला है कंसीडरेशन-दूसरों का पक्ष समझना तथा सामने वाले की बात सुनना तथा समझना। दूसरा -भावमयी करुणा-दया-कंपैशन है और तीसरा है-दूसरों की भलाई व अच्छाई के लिए चिंतन-मनन करना, चैतन्य रहना-कंसर्न।
इसके लिए पहले अपने चारों ओर रहने वालों के लिए संवेदनशील होना पड़ता है। उनके प्रति अपना दायित्व व कर्त्तव्य निभाकर फिर दायरा बड़ा कर समाज, देश व विश्व के प्रति अपना दायित्व समझकर कर्म करना है। मानव होने का अर्थ है मानव धर्म निबाहना तभी कल्याण होगा।
यह कार्य कभी भी जोड़-तोड़ या झूठ और पाखंड से हो ही नहीं सकता। जो लोग यह मान लेते हैं कि ईमानदारी-स्पष्टïता व सरलता से कुछ भी आज के युग में पाया नहीं जा सकता। वे प्रकृति की न्याय व्यवस्था व समय के बेआवाज़ कोड़े से अनजान हैं। अपनी सत्यता व ईमानदारी के अनुरूप फल की इच्छा और अपने को दूसरों से पृथक व उच्च मानने के अहंकार के कारण ही उनकी उन्नति में गतिरोध आता है और इस रुकावट के कारण ही कुंठा उपजती है। कुंठा से क्षोभ ही उत्पन्न होता है। सत्य व ईमानदारी के प्रसार का साहस नहीं।
प्राकृतिक नियम के अनुसार सत्य जीतेगा ही पर सत्य पर टिके रहने के लिए सदा समर्पण व भक्ति में रह कर सत्कर्म करते ही रहना होता है। सत्य की तपस्या से ही वह दिव्य शक्ति प्राप्त होती है जो सत्य की स्थापना के लिए बड़े से बड़े त्याग के लिए प्रेरित करती है और दूसरों के लिए भी उदाहरण बन प्रेरणास्रोत बनती है। मानव एक-दूसरे के पूरक बनें तभी तो एकत्व और पूर्णता का सच्चा अर्थ समझ आएगा जो आनन्द जगाएगा-
सत्य कर्म प्रेम से हो परिपूर्ण मानव धर्म हमारा
हों विवेकी विद्वान त्यागी
दिव्य तेज कर्त्तव्य व्रतधारी धरा पर
मानव हो धीर गंभीर लक्ष्य प्रहरी दृढ़निश्चयी
सभ्य सुशिक्षित सौम्य सुविचारी सुदर्शन व्यक्तित्व शोभापूर्ण वाणी
सम्पूर्ण विश्व में हो सत्य मानवों की आदर सहित अगवानी
यही है वेद संस्कृति की सही कहानी
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ