मानव से मानव का व्यवहार

मानव से मानव का व्यवहार

हे मानव!
तू कब का भूल चुका है यह। सदियों से कब का ये माँ बाप के निश्छल प्रेम-व्यवहार से बढ़कर भाई-बहिन आदि खून के रिश्तों में बंधकर अपना जाल फैलाता ही गया। धीरे-धीरे सामाजिक व आर्थिक सम्बन्धों को भी अपने मकड़जाल में लपेटता गया फिर जो मनभायी कहें चाटुकारिता व मनोरंजन करें उनको भी अपने दायरे में समेटता चला गया, पता ही न चला। सारे सम्बन्धों, नातों व सम्पर्कों में आते लोग बनी बनाई छवियों के अनुसार बंधे बंधाए व्यवहार में ढल गए। किसी का स्वागत सत्कार कम, किसी का अधिक सब आवश्यकतानुसार औपचारिकता व अभिनय ही बनकर रह गया। इतना पाखंड, बनावटीपन व झूठ कि सत्य व्यवहार लुप्त ही हो गया। सब मन बुद्धि का खेल बन गया, नौटंकी जैसा। आत्मा वाला आत्मीयता का प्रेममय व्यवहार खो ही गया।

मानव मानव से व्यवहार नहीं करता बल्कि व्यक्ति विशेष से स्वार्थपूर्ण मनोस्थिति के अधीन हो अपना पार्ट अदा करता है दूसरों को अपने मनोनुकूल बना अपनी ही तुष्टि साधता है चाहे प्यार हो या व्यापार। कौन कितने काम का है गुरु स्वामी हो चाहे नौकर मालिक। सभी कुछ इसी मानसिकता से संचालित ताश के पत्तों जैसा खेल। बात फेंक तमाशा देख। इसी में चुक जाता है मानव और अनमोल जिंदगी चूक जाती है।

सच्चा ज्ञान, ध्यान तभी प्राप्त होगा जब मानव से मानव का व्यवहार जानकर कर्मरत होगा। इस प्रक्रिया को समझने के लिए अब कुछ तैयारी व साधना तो करनी ही होगी वरना सदियों से विधि-विधानों व अनेकों धर्मों के गोरखधंधों में अटका-भटका भूला हुआ ज्ञान कैसे पुन: प्रस्फुटित होगा। पहले अपने मन-मस्तिष्क को प्रकाशित करने के लिए खुलना और खिलना (ओपनिंग एंड ब्लासमिंग) प्रकृति के सरलतम व उच्चतम नियमों का अभ्यास करना होगा। खुलने के लिए जब भी कोई याद या ध्यान में आ जाए उसको प्रेम सद्भावना व प्रार्थना का मानसिक संदेश अवश्य ही भेजें। एस एम एस जैसा करें बिना किसी कारण नि:स्वार्थ होकर क्योंकि जो कुछ भी परम बोधि हमारे ध्यान में डालती है उसका प्रकृति की पूर्व नियोजित पूर्ण व्यवस्था में सुनिश्चित प्रयोजन अवश्य ही होता है जो पराज्ञानी जानता है पर जो नहीं जानता वह यह आस्था रखे कि यह प्रक्रिया अपने चारों ओर से सकारात्मक व शुभ भाव आकर्षित करने का अद्वितीय माध्यम है। इस प्रकार से खुलने (ओपनिंग) की परिणति है रिएलाइजेशन वास्तविकता से साक्षात्कार।

खिलना-अपने चारों ओर की प्रत्येक आनन्ददायी घटनाओं और दूसरों की खुशियों में ऐसे आनन्द पाना व खुश होना जैसे कि वे आपकी अपनी ही खुशी हो। किसी की सफलता पर बिना किसी ईर्ष्या-द्वेष का भाव आए आनन्द अनुभव करना, जताए जाने की औपचारिकता से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उसके अंतर का प्रभु जानता है उसका सत्य वहाँ लिखा जाता है। इस भाव की पराकाष्ठा से एनलाइटेनमेण्ट प्रकाश होता है जहाँ एकत्व का तत्व समझ आने लगता है। आत्मानुभूति का मार्ग प्रशस्त होता है। तो हे मानव! खुल और खिल अपने अस्तित्व से मिल, तोड़ दे दिलों के ताले, उड़ने दे मन पंछी को आज़ाद, सब दूरियाँ, सीमाएँ, मन भावों की ही होती हैं, पूरी सृष्टि का तू अंश है, उसी की सम्पूर्णता का भागीदार, तो क्यों अटका है, तेरे-मेरे में, अहम् की तुष्टि में।

कर सत्य, प्रेम, प्रकाश का विस्तार
तभी होगा निस्तार
पूर्ण विश्वास है सच्चे मानव मन में
आने वाला है समय प्रणाम के मन के मानव का
बहेगी सत्य प्रेम व कर्म की धारा
होगा सपना सच वेद वचन
सत्यमेव जयते औ’ वसुधैव कुटुम्बकम् का।


यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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