भारत भाग्य विधाता कहां हो, भारत भाग्य विधाता कहां न हो

भारत भाग्य विधाता कहां न हो

हे सनातन मानव !

तू कहां खो गया है इतनी गिरावट-अधोगति कि मानव त्राहि-त्राहि कर रहा है मानवता घुट-घुट कर दम तोड़ रही है। क्या ये पढ़े-लिखे लोग हैं इनकी शिक्षा दीक्षा कहां की है।

भाषणों का स्तर केवल अपनी ही आत्म प्रशंसा और बाकी सबकी भर्तसना पर ही उठकर गया है क्या कोई ऐसा आत्मवान-शक्तिमान मानव बचा ही नहीं भारत में जो उठे और इन महामूर्ख भ्रष्टाचारी नेताओं को ठिकाने लगा दे। जब कांग्रेस पप्पू और मिट्ठू बोलते हैं तो बीजेपी के ही नम्बर बढ़ा देते हैं और जब बीजेपी के पिट्ठू और टट्टू बोलते हैं तो कांग्रेस के नम्बर बढ़ जाते हैं। क्या ताजमहल क्‍या लालकिला क्या बहाई या क्‍या अक्षरधाम आदि-आदि।

ये सभी मध्य इमारतें क्या बिगाड़ रही हैं देश का मानवों का। जो इतना वाद-विवाद इन पर किया जाता है।

जब भी देश में द्वेष घृणा हिंसा अराजकता और अभद्रता का विष फैलता है तो कहां सो जाते हैं सभी गुरु स्वामी । कोई भी व्यक्तव्य ना प्रयत्न सही-गलत सुझाकर मार्ग दर्शन का। उन्हें भी भय रहता है कि जिसके राज्य में जमीनें हथियाई भव्य आश्रम बनाए कहीं उनकी भी जांच पड़ताल ना हो जाए।

मीडिया प्रसार माध्यम तो वैसे भी ना दूरदर्शी है ना उन्हें देश से सरोकार है। सिर ऊपर उठाकर सूरत और सीरत कैसे देखें। औंधे मुंह पड़े-पड़े खरीदने वालों के चरणों की सुनहरी जूती ही देख सकते हैं। उन्हें ही पकड़ कर लम्बे पड़े हैं | नेताओं व व्यापारियों की भांति धन बटोरने में लगे हैं।

जो भारत की मानवता हित की बात करे या कुछ कर्म करे उसे कहीं भी नहीं बखाना जाता । बल्कि सत्यवादी कर्मयोगी को कहीं आसपास भटकने नहीं देते दूर ही रखते हैं कि जनता को कहीं सत्य की झलक ना दिख जाए।

प्रातिक्रिया दे