भारत की सच्ची स्वतंत्रता

आज के ऐतिहासिक दिवस पर भारत के शरीर को गुलाम बनाने वाली शक्तियों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। पर भारत की आत्मा तो अभी भी उन शक्तियों के भार से दबी हुई है जो कि मानव के अधोपतन व गुंजल का कारण हैं। सत्ता व धन की लोलुपता उत्थान में बाधक हैं क्योंकि सत्य सुयोग्य क्षमताओं को न तो प्रेरित कर आगे लाया जाता है न सहायता की जाती है।

अब समय है भारत की आत्मा की मुक्ति का, सत्य के आधार पर सामाजिक धार्मिक आर्थिक व राजनैतिक सभी क्षेत्रों के पूर्ण रूपान्तरण हेतु। हमको हमारी उस सनातन धर्म की गौरवशाली परम्परा में स्थित होना है जो कि भारत की पवित्र धरती पर प्रथम सत्य मानव को सौंपी गई। सनातन का अर्थ है आदि न अन्त- नित्य निरन्तर शाश्वत-अन्तहीन अविरल प्रवाह शाश्वत सत्य का। यही आधार है कृतित्व पूर्णता और अपूर्णता व अज्ञान के संहार का। इन्हीं सत्य नियमों के आधार पर धरणी धरा अस्तित्व में आई और पल्लवित हुई। फिर मानव आया जिसका उद्देश्य था सनातन धर्म की उत्कृष्टता उसका प्रतिनिधि बन स्थापित करना व समस्त सृष्टि में व्याप्त सत्य विवेक सौन्दर्य शोभा व ऐश्वर्य को मूर्त रूप देना।

सबसे बड़ा चमत्कार प्रकृति से संचालित सनातन धर्म का यह है कि वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का पोषण इस प्रकार से करता है कि प्रत्येक वस्तु सदा ही उन्नत होती रहती है। इसी कारण सनातन धर्म-प्रकृति का सर्वोत्कृष्ट पोषक व उत्थानकारी शक्ति तत्व वेद भूमि भारत को ही दिया गया। क्योंकि सनातन धर्म मानव कृत धार्मिकता नहीं है। इसका आधार पूर्णतया आत्मा का विज्ञान और सत्य कर्म संस्कृति है इसलिए यह आन्तरिक रूप से मानव का मार्गदर्शन करता है कि कैसे सही आत्मिक शक्ति से इस जगत में खेलना है व्यवहार करना है। सनातन धर्म जीवन की पूर्णता का द्योतक है। यह प्रकृति का धर्म कोई आध्यात्मवाद या धार्मिकता नहीं है। यह अदृश्य प्रभु का निरन्तर प्रवाह है वो परम चेतना है जो सदा समय-समय पर सर्वोत्तम मानवों द्वारा अपने को परिलक्षित करती है। विशेषकर भारत में समय की मांग के अनुसार सही मार्ग सुझाने हेतु यही गीता का संभवामि युगे-युगे वक्तव्य है वचन है।

प्राकृतिक नियम का यह सुन्दर ज्ञान केवल भारत की धरोहर है पूंजी है। जिसे प्रत्येक युग के उन्नत मानवों ने अपनी अटूट श्रृंखला से व्यवहार में लाकर-जीकर संजोए रखा बचाए रखा। कलियुग में यह शुद्ध ज्ञान कई महान आत्माओं द्वारा लेखनीबद्ध है जो प्रणाम की व्यवहारिका में प्रयुक्त है। अब प्रकृति व परिस्थितियों ने प्रत्येक को कगार पर लाकर इसी पर चलने के लिए बाध्य कर दिया है। यही समय की पुकार है।

जो समय की इस पुकार को सुनेंगे वो अपने कर्मचक्रों से मुक्त हो पिछले बंधनों से छूट आनन्दमय अस्तित्व की ओर अग्रसर होंगे। वरना अग्नि दीक्षा, परीक्षा होगी। बाह्य अग्नियाँ,बम युद्ध, भूचाल आदि आन्तरिक अग्नियाँबीमारियाँदुर्भाग्य आदि। जो अपना सत्य जान अपने घर कार्य करेंगे उन्हें इन सबसे प्रभावित हुए बिना बाहर आने की दिव्य सहायता व मदद प्राप्त होगी और वो दूसरों की सहायता में भी सक्षम होंगे। जो इस पुकार को अनसुनी करेंगे वो अपनी अपूर्णता की अग्नि में स्वत: ही भस्म हो जाएंगे।

हमारे महान भारत देश की धरती सदा ही उन्नत मानवों अवतारों प्रेरणादायी नेताओं और मार्गदर्शकों की जननी है जिन्होंने मानवता को सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश का मार्ग सुझाया। समय एक बार फिर भारत की सत्यता से जी हुईं भारतीय संस्कृति की विजय दर्शा रहा है। साड़ी बिन्दी युक्त अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाकर भी कैसे एक नारी ने भारत के सर्वोच्च पद तक अपना मार्ग प्रशस्त किया।

अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातों को नकारना नहीं होता पर प्रगति के लिए उनमें से क्या अपनाना है। इसका विवेक जागृत करना है न कि क्षणिक सुख व स्वार्थी इच्छाओं की पूर्ति के लिए इनका दुष्प्रयोग। अब सबको यह समझना ही होगा कि शारीरिक स्वतन्त्रता पा लेना ही काफी नहीं अब आत्मिक स्वतन्त्रता अभीष्ट है। यदि भारत को वास्तव में उत्कृष्ट राष्ट्र बनाने की दिशा में बढ़ना है। अच्छी आर्थिक उन्नति प्रचुर मात्रा में भोग विलास की सामग्रियाँ बढ़ी हैं, जीवन स्तर भी भौतिक रूप से ऊँचा हुआ है पर मानव मूल्य बहुत घटे हैं।

स्वतन्त्रता का सही अर्थ समझना बहुत कठिन है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि अपनी मनभावन कुटिल मांगों के अनुसार दूसरों को अपने ही हिसाब से नचाओ। सच्ची स्वतन्त्रता है सबसे एकत्व अनुभव कर प्रफुल्लता का बढ़ावा व उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना। न कि औरों को घसीटो ताकि तुम आगे दिखो। आगे बढ़ने के लिए अपनी लाइन बड़ी करनी होगी।

भारत में सभी गुणात्मकता है आत्मिक शारीरिक व मानसिक उत्थान हेतु। तो आओ संकल्प लें इस स्वतंत्रता दिवस पर- अपने पर सनातन धर्म की तुला पर तौल कर सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश पर कर्म करें। भारत माँके गौरव व शोभा की पुर्नस्थापना हेतु। भारत जगद्गुरु होगा ही जो सिखाना है वह उदाहरण बन कर दिखाना है। इसके लिए कहीं से तकनीक दोहराने की आवश्यकता नहीं।

सनातन धर्म का अजस्र शक्ति स्रोत हमारे अंदर है उसी के बल पर माँ भारती को परमावस्था की ओर अग्रसर करना है। इस शुभ अवसर पर प्रणाम प्रत्येक सत्ययोगी कर्मयोगी व प्रेमयोगी प्रकाशयुक्त मानवों को पुकारता है। इस रूपान्तरण की क्रांति में आहुति हेतु प्रणाम का हिस्सा बन हमारी कल्याणकारी वेदभूमि भारत वर्ष को परमात्मानुभूत धरती के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए। अपूर्णता अज्ञान असत्य जहाँ कहीं भी है उसे पूर्णतया विनष्ट कर सत्य स्थापना को आओ एकजुट हो जाएँ।
जय भारत
वन्दे मातरम्
यही है सत्य
यहीं है सत्य

  • प्रणाम मीना ऊँ

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