जाग अब तो जगाए प्रणाम, युगचेतना का संकेत जान
चंचल मन की छोड़ दासता, अंतर्मन का सत्य पहचान
हे मानव! कालचक्र घूमा है, समय करवट ले रहा है, सब प्रबुद्ध मानवों के दिलों में कुछ खालीपन कुछ अजीब-सी तटस्थता छाई है। खोल दो दिलों के ताले, उड़ने दो अंतरात्मा के पंछी को आज़ाद। अपने-अपने सत्य को स्वीकार कर लो। मुक्त हो जाओ दुविधाओं और संशयों से। तू बदलेगा मानव, बदलना ही होगा। यही बात जानने व मानने की है बदलाव की घड़ी आ ही पहुँची है अब तू चाहे या न चाहे तेरी मानसिकता सत्य की ओर आकर्षित होगी ही। क्योंकि तू ही तो सदियों से सत्य को खोज रहा है। अब तो सत्य जीने की बारी है नहीं तो व्याधियां, विषाद, विक्षिप्तताएं आदि नियति के थपेड़े सताएँगे।
जो कुछ भी चारों ओर घट रहा है उनका संदेश समझने में अपना ध्यान व ज्ञान लगा और बह चल समय की पुकार पर। कुछ भी अर्थहीन या प्रयोजनहीन नहीं। सब कुछ समयानुकूल कर्म करने के प्रेरणादायक स्रोत हैं। ताकि तू यह न कह सके कि समय ने चेताया नहीं और तू चूक गया। समय की आवश्यकता व मांग समझ कर अपना कर्म निश्चित कर लेना ही तुझे दिव्यता की उस सीढ़ी पर चढ़ा देगा जो मानव उत्थान की पराकाष्ठा को जाती है। मानव धर्म व युग धर्म के योग्य बनने के लिए अपने ऊपर ही काम करना होगा इन दस भावों को साध कर, बदलकर-
– भय को बदलो प्रेम में सबमें एक ही नूर समाया जानकर।
– ओढ़ी हुई छवि हिपोक्रेसी पाखंड दिखावा व ढोंग को बदलो स्वयंसिद्धता व सत्य में क्योंकि ओढ़ी हुई छवि या व्यक्तित्व से बड़ा झूठ कोई नहीं यह मानकर।
– दूसरों पर अनावश्यक दबाव व नियंत्रण को बदलो कर्म व विश्वास में। अपना कर्म पूर्ण विश्वास व आस्था से करना ही औरों को प्रेरणा देता है।
– स्वयं की आत्म-प्रताड़ना को अपनी दुर्बलताएँ जीतकर आत्मशक्ति में बदलो।
– मन की शक्ति व ज्ञान को विद्वता व विवेक में बदलो जो समयानुसार कर्म का कारण बने।
– स्वतंत्रता व आत्मनिर्भरता को एक दूसरे की पूरकता में बदलो एक-दूसरे को छोटा दिखाना व समझना प्रगति में बाधक है।
– बदले या होड़ की भावना बदलो मुक्ति के आनन्द में, बदले की भावना विषाद उपजाती है।
– क्रोध को अपूर्णता व असत्य के विनाश की दुर्गा शक्ति में बदलो।
– समस्याओं को समर्पण व सत् कर्म में, जीवन को परीक्षा पत्र की तरह स्वीकारने में ही बुद्धिमानी है।
– प्रेम की कमी को पवित्र निश्छल प्रेम के प्रसार में बदलो, जो कुछ भी तुम्हें नहीं मिल पाया उसे ही भरपूर बांटना है।
अपनी बात मनवाना हो तो अपने में विश्वास रखो। दूसरे तुम्हें क्या समझते हैं इसकी चिंता छोड़ो सिर्फ अपने प्रति ईमानदार रहो। होड़ की अंधी दौड़ में अपने विशेष अद्वितीय अस्तित्व को भूल गया है मानव पर अब अपने सच्चे स्रोत व जड़ से जुड़ना है जो मानव धर्म की पोषक है।
बढ़ना है सुप्रभात की ओर
सत्य प्रेम की पकड़ डोर।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ