लग रहा है सुबह से ही
जैसे सारे ब्रह्माण्ड में
फैलती ही जा रही हूँ
पिघला जा रहा है रोम-रोम
सारा का सारा मेरा अस्तित्व
पिघल-पिघल कर चारों ओर
जो तत्व जहाँ तक है
वहाँ तक पहुँच रहा है
धुआँ सा बन बादलों में
पानी बन सागर नदियों में
अग्नि बन कोटि-कोटि सूर्यों में
हवा बन आकाश में
प्रकाश बन ब्रह्माण्ड में
मिट्टी बन धरती के कण-कण में
और भाव बन कृष्ण में
कण-कृष्ण व्याप्त कृष्ण व्योम कृष्ण
कृष्ण चेतना, व्योम व्याप्त चेतना ही कृष्ण है
यही सत्य है !!
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ