जब एक प्रेम पूरित श्रद्धालु का हृदय चीत्कार कर उठता है घोर अन्याय के विरुद्ध। पर नितांत असहाय होने के कारण सिर्फ अश्रु ही बहा सकता है। यही अविरल अश्रुधारा प्रभु दर्शन करा देती है। अविरल अश्रुधारा गंगाधार के समान सब पाप धो देती है और पवित्र हुआ निर्मल मन प्रभु को पा लेता है।
दर्शन बड़ा व्यापक और गूढ़ अर्थवादी शब्द है। ज्ञान त्याग और संयम की सत्यता स्थापित करने को अंतर्मन में प्रभु का प्रकाश फैल जाता है, धर्म की स्थापना होती है। संतों को जब कोई रास्ता सुझाई नहीं देता, कोई बाहरी सहायता की आस नहीं रहती, सब रास्ते बंद हो जाते हैं, घोर अंधकार ही अंधकार छा जाता है तो जागरण होता है।
सही मार्ग पर चलने वाले को जब बाहरी तत्वों से असुरक्षा उत्पन्न हो जाती है तो सही, सत्य धर्म और नियम पर चलने वाले की आस्था को डगमगाने से बचाने के लिए स्वयं सच्चिदानन्द के स्वरूप की स्थापना हो जाती है।
प्रभु या ईश्वर कोई आकार या स्वरूप नहीं
एक एकाकी सत्य
दर्शन है
दर्शन
सत्यसुदर्शन
यही है मेरा
तुम्हारा
सच !!
- प्रणाम मीना ऊँ