भारत में जितने भी देवी-देवता हैं वो सब अपने आप में कुछ संदेश लिए हुए हैं। अपने आप में पूरी पुस्तक हैं। उनकी प्रार्थनाओं में उनके चरित्र-चित्रण में सबमें एक संदेश है पर लोगों ने उनकी मूर्तियों को और सुन्दर बनाने मालाएं चढ़ाने में पूजा करने में घंटियां बजा-बजा कर, दीया अगरबत्ती जलाने को ही बस धर्म बना लिया। मैं इनका विरोध नहीं करती पर सही अर्थों में तभी पूजा मानी जायेगी जब हम उस मूर्ति को विशिष्ट मुद्रा आकृति का संदेश समझ उसी के अनुसार जीवन चलाने की कोशिश करेंगे, तभी उस पूजा का फायदा है लाभ है। शिव प्रतीकात्मकता-
ध्यान में रहना, जब बहुत ही जरूरी हो तभी क्रोध करना तीसरा नेत्र खोलना।
सभी दसों भावों को संतुलित करना, डमरू
रूद्राक्ष प्रकृति को अपनाना
शक्ति का संतुलन
दुनिया की अपूर्णता को भी गले लगाना
योग संन्यास गृहस्थ का अद्भुत संगम सत्यम् शिवम्ï सुन्दरम्
ध्यान से ज्ञान
त्रिशुल तीन शूलों का नाश :-
1. वात
2. पित्त
3. कफ
दुनिया के लिए, दुनिया का दिया ज़हर पीना पर उसे पेट तक न जाने देना।
इसी प्रकार बहुत सी प्रतीकात्मक आकृतियाँ व संदेश सभी देवी-देवताओं की प्रतिमाओं में निहित हैं। उन्हें जानने की साधना सत्य ज्ञान तक पहुँचा देती है।
- प्रणाम मीना ऊँ