प्रणाम स्तुति ज्ञान से श्रीगणेश पूजा होवे गुण दूजा

श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥


श्री गणेश घुमावदार सूँड़, बड़ी काया व करोड़ों सूर्यों की प्रभा ज्योत्स्ना वाले, मेरा प्रत्येक कार्य सदा निर्विघ्न करो। भारतीय परम्परा है कि कोई भी कार्य व्यापार से पूजा तक गणेश वंदना से ही प्रारम्भ होता है। यह एक रीति की तरह निभाया जाता है। इसका अर्थ बहुत ही गहरा व अर्थपूर्ण है। जिसको समझना व समझाना विशेषकर नौजवान पीढ़ी को अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इससे उन्हें हमारी संस्कृति और उसके वेदपूर्ण विज्ञान की सही पहचान होगी।

देवी-देवताओं के स्वरूप व पूजा विधि में छुपी फिलॉसफी दर्शन व संदेश समझकर पूजा करने से ही पूजा पूर्णता को प्राप्त होती है। गणेश जी की घुमावदार सूँड़ कुंडलिनी शक्ति जगाने का प्रतीक है। लम्बे बड़े-बड़े कान दूरी तक दूसरों की बात आत्मसात् कर ध्यान देने का संकेत हैं। बड़ा पेट अपने मन की बात पूरी होने तक अंदर रखने की प्रेरणा है। एक दांत महाभारत के उस समय की याद दिलाता है जब वेद व्यास ऋषि ज्ञान व लेखनी के अहंकारवश महाभारत ग्रंथ शुरू नहीं कर पा रहे थे तब उनको उन गणेशजी को याद करना पड़ा जो चंद्र द्वारा शापित होने के कारण कृतित्व व कल्पनाओं की ऊर्जा से वंचित थे। पर तब सच्चे मन की पुकार पर शीघ्र प्रसन्न होने वाले प्रसन्नवदन गणेशजी ने अपना एक दांत तोड़कर कलम बना महाभारत ग्रंथ का श्रीगणेश किया। तभी महाभारत काल से ही अद्वितीय हाथी दांत आइवरी कला का विकास प्रारम्भ हुआ।

गणेशजी का वाहन चूहा है। चूहे की विशेषता है जब सारा जग बेखबर सोता है वह अपने बिल में क्या क्या संग्रह करता रहता है पर पता तब लगता है जब उसके बच्चे खेलने लगते हैं। इसी प्रकार कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पहले उसकी पूरी जानकारी व तैयारी चुपचाप साधना की तरह कर लेनी चाहिए। ये ज्ञान और साधना ही सफलता का वाहन बनते हैं। इस सफलता का प्रतीक लड्डू ही तो गणेशजी के हाथ में शोभित है। स्तुति आराध्य के गुणों को आत्मसात् करने का संकल्प व तपस्या है। उनकी पूर्ण स्तुति यह है :-

ऊँ विघ्नाशाय नम : – सब कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो ऐसा ज्ञान दो।
ऊँ सुमुखाय नम : – सुंदरता से परिपूर्ण हो।
ऊँ एक दन्ताय नम : – लक्ष्य पर स्थिरता व त्याग
ऊँ राजाननाय नम : – हृदय की विशालता, दूरदर्शिता व सूक्ष्मदर्शिता की शक्ति।
ऊँ राजकर्णाय नम :- संसार की सब बातों को आत्मसात् करने की शक्ति
ऊँ लम्बोदराय नम : – कार्य सिद्धि तक विचारों को उदरस्थ की शक्ति
ऊँ धूम्रकेतवे नम : – विचारों की स्पष्टïता व यश पाने की शक्ति
ऊँ भाल चंद्राय नम : – उच्च विचार पर नम्रता व सफलता से मस्तक ऊँचा
ऊँविकटाय नम : – विरोधियों के लिए विकट शक्ति
ऊँ विनाकाय नम : – श्रेष्ठï नेतृत्व के गुणों की प्रेरणा
ऊँ गणाध्यक्षाय नम :- गणमान्य व्यक्तियों में भी गणमान्य होऊँ

एक और बड़ा ही महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश गणेशजी की आकृति देती है। यदि घर या आसपास कोई विकलांग या भिन्न आकृति वाला मानव या बालक हो तो उसकी उपेक्षा न कर पूरा सम्मान दें, सामाजिक समारोहों व क्रियाकलापों में, क्योंकि उनका मन भी निर्विघ्न कार्य पूरा होने की दुआ देगा।

प्रतीक अपने आपमें पूर्ण संदेश व ज्ञान लिए होते हैं। जिन्हें अच्छी तरह समझकर, गुनकर भावपूर्वक, ध्यानपूर्वक व विधिपूर्वक करने से ही चमत्कृत करने वाले अनुभव होते हैं, अन्यथा यह केवल रीतिरिवाज ही बनकर रह जाते हैं जो थोड़ी सकारात्मकता तो दे देंगे पर वह शक्ति नहीं दे पाते जो उत्थान सफलता व पूर्ण आनन्द का कारण बनती है। सच्ची पूजा मूर्ति को खूब सजाकर शंृगार कर आरती उतारकर ही पूर्ण नहीं होती। किसी कार्य का श्रीगणेश करने व सफल होने के लिए मंगलमूर्ति श्रीगणेशजी के गुण-स्तुति सहित अपनाने से ही कल्याण होता है।

भारत की महान प्रतीकात्मक परम्परा को, उसकी सुनहरी विरासत को, उसमें निहित छुपे महान ज्ञान को, उनकी सौंदर्यमयी भव्य कृतियों के रचयिताओं को प्रणाम का प्रणाम।
समस्त विश्व को अभिभूत करे माँ भारती का सौंदर्य यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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