प्रणाम भारत का धर्म सत्य प्रेम और कर्म

सदैव आकांक्षा करो
एक ऐसे संवेदनशील हृदय की,
जो सबसे नि:स्वार्थ प्रेम करे
ऐसे सुंदर हाथों की,
जो सबकी श्रद्धा से सेवा करें
ऐसे सशक्त पगों की,
जो सब तक प्रसन्नता से पहुँचें
ऐसे खुले मन की,
जो सब प्राणियों को सत्यता से अपनाए
ऐसी मुक्त आत्मा की,
जो आनन्द से सबमें लीन हो जाए

धर्म वही है जो जात-पात, ऊँच-नीच और मेरा-तेरा छोड़ सबको खुशी दे एवं उन्नत होने में सहायक हो। धर्म प्रेम का प्रसार है, ज्ञान के प्रकाश का विस्तार है। सब धर्मों का निचोड़ यही तो है। पर मानवकृत धर्मों के प्रचार की दौड़ में मुख्य बिंदु प्रेम प्रकाश सत्य व कर्म कहीं खो गया। भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के दायरे में बँधकर संकीर्णता की सीमा रेखाएँ अपने चारों ओर खींच ली। कबीर की कथनी भुला दी-
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय॥


मुसलमान भाईयों की नमाज़ की जो शारीरिक प्रक्रियाएँ हैं वह हिन्दुओं की योग प्रक्रिया सूर्य नमस्कार से बहुत कुछ मिलती जुलती हैं। नमाज़ के बाद हथेलियाँ देखने की प्रथा इस भारतीय मंत्र की याद सहज ही दिला देती है-
कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती,
कर मूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्


यदि मानव प्रत्येक महान विभूतियों के वचनों से व धार्मिक ग्रंथों से एक-एक मोती चुनकर अपने जीवन में उतार ले तो भी कल्याण हो जाए।
– श्रीराम की मर्यादा-कैसा हो आदर्श परिवार, समाज व राज्य
– श्री हनुमान जी की नि:स्वार्थ सेवा व अटूट भक्ति
– श्री बुद्ध जी का अहिंसा, त्याग व तप, सत्य जानने की आकांक्षा
– श्री महावीर जी की दया, करुणा व ज्ञान-विस्तार
– सुश्री मीरा का पूर्ण समर्पण वाला प्रेम
– श्री नानक की अटूट आस्था व नित्य भक्ति
– श्री ईसा मसीह की क्षमा, करुणा व सादगी
– श्री मोहम्मद साहब का वचन हक हलाल की खाना
– श्री कबीर की क्रांतिकारी मस्ती, हर असत्य पर चोट।
– श्री विवेकानंद का विवेक और युग प्रवर्तक ओजस्विता
– श्रीकृष्ण का ज्ञानयोग सत्य, कर्म व पूर्ण समर्पण प्रेम विस्तार और सर्वोपरि है उदारता माँ भारती की, वेदभूमि भारत की जहाँ जगद्गुरु प्रस्फुटित हुए।

भारतभूमि के तो कण-कण में सत्यम् शिवम् सुंदरम् संस्कृति का अद्भुत सौंदर्य समाया हुआ है। जितनी भी मूर्तियाँ मंदिर हैं सबमें प्रतीकात्मक ज्ञान का भंडार समाया है। इस पावन भूमि की संस्कृति में ही मानव जीवन के सौंदर्य का रहस्य छुपा है। हर विधि हवन से लेकर त्यौहार मनाने तक सबमें बहुत सुंदर रूप से वैज्ञानिक तथ्य छुपे हैं। उनकी सही विवेचना कर नई पीढ़ी को यह वेदों का वैज्ञानिक सत्य बताना है। यह कार्य सिद्ध करने को प्रणाम कृतसंकल्प है व पूर्णतया तत्पर है।
जो व्यक्ति मनसा-वाचा-कर्मणा सत्य हो जाता है वही सत्य की विजय की स्थापना को उद्यत होता है। सत्य सदा विजयी ही होगा उसको किसी प्रमाण या बाह्य शक्ति की अपेक्षा नहीं। बीरबल ने कहा- अपनी लाइन बड़ी करो दूसरे की अपने आप छोटी हो जाएगी। इतने अवतारी पीर पैगम्बर आए हमें राह सुझाने, पर क्या कष्ट कम हुए। मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की, क्योंकि पाठ तो खूब रटे, ढिंढोरा भी खूब पीटा पर अपने पर सत्यता से कर्म नहीं किया।

अब ज्ञान को कर्म में बदलने का समय आ गया है। सत्यता से कर्म करेंगे तभी मातृभूमि का कज़र् उतार पाएँगे। कब कहा सूफी संतों ने कीमती चादरें चढ़ाना बड़े-बड़े मंदिर-मस्जि़द बनवाना। उनका तो बस यही कहना था-
जोत से जोत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो

भारत महान है यह ऐसे ही नहीं कहा गया। यह भूमि प्रकृति का चुनाव है सब ब्रह्माण्डीय शक्तियाँ इस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। यहीं वो गीता गूँजी जो श्रीकृष्ण को जगद्गुरु बना गई।

कृष्ण व्यक्ति का नाम नहीं। जो पूर्णरूप से सत्य प्रेम कर्म व ज्ञान प्रकाशमय हो आकर्षित करे वही मानव कृष्णमय होता है। जो ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्यों को जानकर अपनी प्रत्येक क्रिया से धरती पर स्थापित करता है। अपनी वाणी से युगचेतना को शब्द देता है। मानव जीवन की उत्कृष्टïता की चरम सीमा पर पहुँचकर पूरी सृष्टि से एकाकार हो जाता है तभी तो मन, शरीर, आत्मा का सम्पूर्ण वेद-विज्ञान जान जाता है यही तो कृष्णमयी अवस्था है जो धर्म का मूल है। भारत को विश्व में मानवता का वेद संदेश देने के लिए उदाहरण बनना ही है।
यही सत्य है।

  • प्रणाम मीना ऊँ

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