प्रणाम का ‘माना मार्ग’ : पूर्णता की यात्रा का पथ

चार दल कमल से सहस्रदल कमल तक, मूलाधार से सहस्रार तक के उत्थान की यात्रा पूर्ण करनी है मानव को, इसी कारण मानव जीवन मिला है। यही प्रणाम का कर्म है धर्म है पूर्ण मानव होना, सही मानव होना, प्रकृति ने जैसा बनाया पूर्ण, पवित्र और उत्कृष्ट वैसा ही रहना। परमबोधि ने जिस कारण बनाया उसी की चैतन्यता में रहना ताकि मानव पूर्ण होकर ही पूर्ण में मिले न कि बस पूरा हो जाए, मृत्यु को प्राप्त हो जाए, विनष्टï हो जाए।

प्रणाम पूर्णता बताता है। अपनी सभी क्षमताओं को सभी संवेदनाओं को पूर्ण उत्थान तक ले जाना है। उत्थान की वो चरम सीमा जिसे मानव बुद्धि असंभव जानती है पर मानव में अपनी दिव्य परा प्रकृति तक उन्नत होने की क्षमता बीज रूप में विद्यमान है। इसी बीज को प्रस्फुटित करने के लिए प्रणाम कृतसंकल्प है।
यही इस युग की मांग है –
संभवामि युगे युगे!
प्रणाम पूर्णता बताता है। पूर्ण हुए या नहीं यह प्रकृति की सत्य सटीक व्यवस्था व नियमों और ब्रह्माण्डीय परमबोधि पर छोड़ दो। उसे तुम्हारी क्षमता पता है, तुम्हारा मिशन पता है। तुम्हें यहाँ पृथ्वी पर क्यों भेजा सब कुछ पता है। तो हे मानव! संसार से प्राप्त ज्ञान और शिक्षा के आधार पर अनावश्यक बौद्धिक कुश्तियाँ छोड़ दे।
तेरा कर्म है केवल-
पूर्ण सत्यता से पूर्ण कर्म से
पूर्ण प्रेम और पूर्ण चैतन्यता से
जीवन जीवन्त होकर जीना


जो भी पार्ट मिला उसे सम्पूर्णता से खेलना, यही है प्रणाम का ‘माना मार्ग’। अपना सत्य जानो तभी सत्य को जान पाओगे। सत्य जानने वाला ही सत्य को समझ पाता है। सभी कृत्रिम आवरण भेद सत् चित्त आनन्द को अनुभव कर सकता है ‘माना मार्ग’ अकाट्य सनातन और शाश्वत मार्ग है।
पूर्ण सत्यमति सत्यगति
सद्गति की मति और
अनुभूति की पूर्णता का
कालजयी
उत्तरोत्तर विकासशील व
सर्वव्याप्त युग चेतना द्वारा
मान्य मार्ग
माना मार्ग
जो परम बोधि द्वारा संचालित है
सनातन है शाश्वत है
निर्वाण का सत्य है
प्रभुता प्राप्त मानव का सत्य है
शारीरिक नश्वरता का
शाश्वत सत्य है
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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