प्रणाम कहें एक ओंकार भजें चहुँदिश नूर भरें

प्रणाम कहें एक ओंकार भजें चहुँदिश नूर भरें

प्रणाम पूर्ण है। सत्य का विस्तार है। प्रणाम का अर्थ हुआ ‘मेरे प्रकृति स्वरूप प्राणों का विस्तार नम्रतापूर्वक ‘। प्राणों का विस्तार सत्य, निर्भय, निर्द्वन्द्व व स्वतंत्र आत्मा का फैलाव है। जब सत्यमयी आत्मा और आनन्ददायी प्राणों का विस्तार होगा तो सब इंसान अपने आप इन गुणों में आ जाएँगे। जैसे सूर्य प्रकाश फैलने पर अँधेरा अपने आप दूर हो ही जाता है क्योंकि सबकी आत्मा का गुण तो यही है, यही सत्य है सिर्फ मानव इस गुण को भुला बैठे हैं।

जब प्रणाम व ऊँ का महामंत्र चारों दिशाओं में गूंजेगा तो स्वत: ही आत्म-जागरण होगा। जब आत्मा जागेगी तो सत् संकल्प जागेंगे और सत् संकल्पों से सही दिशा मिलेगी। सही दिशा में सही कर्म करने की शक्ति भी अवश्य मिलती है उस अपार अजस्र व पूर्ण शक्ति स्रोत से जो पूरे ब्रह्माण्ड का सत्य रूप हो संचालन करता है।

सत्य कर्म का संकल्प ही जागरण का संदेश है। सत्य को सहयोग देना स्वत: ही असत्य से असहयोग में बदल जाएगा जैसा कि गांधी ने असहयोग का महामंत्र दिया, अहिंसा का शस्त्र दिया और भारत आज़ाद हुआ। तो इसी प्रकार असत्य तथा अपूर्णता से पूर्ण असहयोग की आत्मिक शक्ति देगा ओंकार ऊँ और प्रणाम का महामंत्र।

भारत की व सारे विश्व की आत्माएँ आज़ाद होंगी जो असत्य को गिरवी रख दी गई हैं। प्रणाम पूर्णता का मंत्र है वह पूर्णता जो सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञाता है। भारत माँ आपको प्रणाम कर जगा रही है क्योंकि भारतवासी वेदभूमि भारत माँ को प्रणाम करना भूल गए हैं।

प्रणाम अपने आप में पूर्ण है प्रणव है प्रत्यक्ष है प्रमाण है। प्रमाण है सत्यमय, कर्ममय व प्रेममय होने का। ओंकार का व दूसरों को आदरपूर्वक प्रणाम व नमन करने के महत्व को कभी भी कम नहीं आंका गया चाहे कितने ही धर्म आ गए। यही है इसके सत्य का प्रमाण कि यही अविनाशी तत्व है।

वेद भारत का सारा विवेक ज्ञान सर्वव्यापी ऊँ की ही उत्पत्ति है। इसी आत्मज्ञान और विवेक की सुनहरी विरासत का ही प्रताप है कि भारत को दिशा मिलती ही रहेगी चाहे परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत क्यों न हो जाएँ। भारत का आधार सत्य ही है और जब तक आधार कायम है नया प्रासाद खड़ा हो जाएगा बस कर्मयोगी चाहिए क्योंकि अब कर्म की बेला आ गई है। मुझे भारत की युवा शक्ति में पूर्ण विश्वास है।

आवश्यकता है ऐसे व्यक्तियों की जो अपने मन मस्तिष्क के स्वामी हों जिनमें सत्य, कर्म व प्रेम की धारा बहती हो। प्रणाम ऐसी ही कर्मनिष्ठ सत्-संकल्प वाले राग, द्वेष, क्रोध, स्वार्थ से मुक्त आत्म-सम्मान व देशप्रेम से प्रेरित मानवों को साथ लेकर चलने के लिए राह बनाने के लिए कृतसंकल्प है। कोई उद्देश्य लेकर चलना हो तो पहले अंदर भरपूर आत्मशक्ति चाहिए। जिसकी प्राप्ति भौतिक व आध्यात्मिक जीवन को संतुलित करने से ही होगी।

प्रणाम भारत के महान आध्यात्मिक मनीषियों क्रांति चिंतकों व युगदृष्टाओं के विचारों के मर्म को आत्मसात् करके कर्म का आह्वान करता है। संभवामि युगे-युगे समय की मांग के अनुसार सत्य चिंतन सम्पूर्ण विश्व का कायापलट कर सकता है यह मन की शक्ति आणविक शस्त्रों से भी अधिक शक्तिशाली है। शस्त्र तो विध्वंस कर सिर्फ कुरूपता ही उत्पन्न करेंगे पर सत्य से परिपूर्ण मानव की आत्मिक शक्ति, असत्यता, विद्रूपता और पाखंड का नाश कर सत्यम् शिवम् सुंदरम् को प्रतिष्ठित करती है।

भारत के जनमानस में भारत के गौरव को पुनर्जीवित करने की पूरी योग्यता है। प्रणाम मातृभूमि के शुभ और विश्व शान्ति के लिए भारत जागरण अभियान में आत्माहुति देने के लिए भारत की महान जनता का आह्वान करता है। आइए एकजुट होकर कलियुग के इस महायज्ञ में असत्य की आहुति देकर सत्य, कर्म और प्रेम की ज्योति का अवतरण करें। सच्चिदानंद के प्रकाश की गंगाधार बहाकर सब कलुषता धो डालें-
प्रणाम भारत न्यारा करे जगत उजियारा
हो वेद का पसारा ज्ञान-विज्ञान का सहारा
झूठ से कर किनारा ऊँ ही हो नादब्रह्म प्यारा
वसुधा हो कुटुम्ब हमारा हो प्रेममय ब्रह्माण्ड सारा


श्रीकृष्ण का वचन संभवामि युगे-युगे तो तभी पूर्ण होगा जब छह ईश्वरीय गुणयुक्त मानव पूर्णतया युगचेतना से जुड़कर उसका संदेशवाहक बन मानवता को संबोधित करेगा।

पूर्णता वही है जिसमें पूर्ण ज्ञान-विज्ञान, विद्या-ज्ञान पूर्ण आत्मज्ञान सब समाएँ हैं। पूर्ण धर्म जो प्रकृति प्रदत्त ईश्वरीय धर्म-सत्याचरण है। मानव का बनाया धर्म नहीं। पूर्ण वैराग्य वह जो कर्मरहित नहीं है। पूर्ण शोभा जिसमें प्रत्येक क्रिया शुभ लक्षणों वाली और शोभायुक्त है। पूर्ण ऐश्वर्य जिसमें प्रत्येक विधा का अथाह सागर, कोई भी कहीं भी कभी भी कमी नहीं न प्रेम की, न दया की, न करुणा की, न आनन्द की। पूर्ण यश जिसमें प्रत्येक क्रिया यश फैलाने वाली, कहीं भी नकारात्मकता नहीं। सब सुंदर ही सुंदर प्यारा ही प्यारा।
अरे जागो आँखें खोलो
देखो सत्य दरवाजे पर खड़ा है
ज़रा मन की किवड़िया खोल
सैय्यां तोरे द्वारे खड़े।


अब तो बस ऊँ ही ऊँ गूँजे शरीर घट भीतर जो स्वत: ही सब विकृतियों को शरीर से भगा कर शरीर मंदिर बना देगा और इसी मंदिर में सत्य व प्रेम स्थापित हो कर्म की दिशा देगा। अपने को पहचानो क्योंकि औकात सबकी भगवान होने की है। मनसा-वाचा-कर्मणा सत्य हो जाओ। सबके मुख से जो निकले वह गीता ही हो। सबको प्रभु ने वाणी दी सब गुण दिए ताकि मुख से सुगीता बहे। जो वचन, सत्य व प्रेम के लिए प्रोत्साहित करें, सत्य-कर्म की प्रेरणा दें वही तो गीता हो जाते हैं।

सत्यता का बल और ऊँ जैसा महामंत्र जो समूचे ब्रह्माण्ड से, उसकी परम चेतना से जुड़कर सारे संदेश और सारा तत्व ज्ञान स्वत: ही पा लेता है क्यों न हम उसे प्रणाम करें। ब्रह्माण्ड में जो सप्त ऋषि हैं वह सब वेद-विज्ञान और विद्या ज्ञान को संजोकर रखते हैं, सुपात्र को ही प्रदान करते हैं। आओ सुपात्र बनें।

सुपात्र बनने की एक ही शर्त है सत्यमय, प्रेममय व कर्ममय होना। युगानुसार सुयोग्य अधिकारी सप्त ऋषियों से जुड़कर, सब परा व अपरा ज्ञान प्राप्त करने का पात्र हो जाता है। यही वेद रहस्य है। धन्य है हमारी पावन भूमि भारत के चतुर ऋषि वैज्ञानिक, जिन्होंने सारा ज्ञान प्रतीकों में समा दिया ताकि सुयोग्य ही समझ सकें कोई चुरा न सके। भारत माँ का गौरव कोई छिन्न न कर सके।
सप्तऋषि गुरुओं को प्रणाम
सत्य को जानने का प्रयत्न करने वालों को प्रणाम
मानवधर्म मानने वालों को प्रणाम

यही है प्रणाम
तमसो मा ज्योतिर्गमय…… सत्यमेव जयते …… वंदेमारतम्

  • प्रणाम मीना ऊँ

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