पायो कृष्ण स्वरूप वरदान
तव अंकुरित भयो प्रणाम
मेरे लेखों में है सुगन्ध अनूठी
सादगी शिशु जैसी
सब युगों से बड़ी आयु वाला शिशु
युग-युगान्तर वाला निरन्तरता और अनन्तता का शिशु
जिसकी निश्छलता विवेकियों के विवेक से भी
अच्छी है भली है
सादा सरल सपाट खरा वक्तव्य
जो होता प्रस्फुटित सत्य प्रेम व प्रकाश से
कवितामय है मेरा निवेदन रहस्यवाद की पर्तें खोलता
दर्शनशास्त्र का पुट देता
वेद और विज्ञान से आश्वस्त करता
कुछ उगता-सा कुछ बहता-सा
परम की परमेच्छा से उसी की स्वीकृति से
उसी की स्वीकृति से
उसी की स्वीकृति से
जो है वो, वो ही हूँ
प्रभु रस चाख्यो नैन भाखा भाख्यो
नैनों की भाषा ही बोलनी जानूँ
यही सत्य है यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ