पोथियाँ पढ़-पढक़र नीति विशेषज्ञ बने और जि़न्दगी भर उसी की कमाई पर जीने वाले, जि़न्दगी की सत्यता को कभी समझ न पाए और शायद कभी जि़न्दगी के सत्य से, जि़न्दगी की सही नीति से उनका सामना भी हुआ तो ओढ़ी हुई व्यापारिक बुद्धि वाली नीतियों और युक्तियों से कभी भी कोई मुकदमा नहीं हारते।
दुनियावी अदालत में किसी भी सत्य को बहस कर आप सत्य बना भी दें तो भी असत्य तो असत्य ही रहेगा। ऊपर वाले की अदालत में कोई बहस अपने असत्य को सत्य सिद्ध नहीं कर सकती। ऊपर वाले की अदालत, जो आपके दिल में अन्तरात्मा के सामने ही लगती है वहाँ सत्य सत्य है और असत्य असत्य है।
यह अदालत कभी कोई गलत फैसला नहीं देती और इसके सज़ा देने के आपके ही तरीके हैं जो सांसारिक तरीकों से, सांसारिक सज़ाओं से कहीं अधिक भयावह व कष्टïप्रद है जिसे कहते हैं ऊपर का कोड़ा, ऊपर की लाठी बे-आवाज़ होती है। वो दिन प्रत्येक प्राणी के जीवन में आता है जब वह अपने से पूछता है कि मैं कहाँ गलत हो गया जो यह भोगना पड़ा, भोगता आदमी सिर्फ अपनी ही की गई अनीतियुक्त बातें और असंयमित क्रियाओं का फल है।
अपने मानसिक विकारों का मवाद झेलना पड़ता है शारीरिक और मानसिक व्याधियों के रूप में। ईष्र्या क्रोध बैर अहंकार लोभ मोह के जो भी विचार हम अपने मस्तिष्क से तरंगों के रूप में अपने वातावरण में छोड़ते हैं वो हमें ही घूमकर आकर हमारे ही मन-मस्तिष्क पर आघात करते हैं… यही सत्य है।
प्रणाम मीना ऊँ