दिव्यता में रहना

दिव्यता में रहना

व्यक्तिगत सारी दुविधाओं से ऊपर उठकर
कुछ भी मेरा अपना है ही नहीं
दिव्य चेतना ही मूर्तरूप में
परिलक्षित हो रही है…
मेरा या तेरा कुछ भी नहीं
योग है दिव्यता से एकत्व
मैं परम का यंत्र हूँ, माध्यम हूँ
अपने आत्म तत्व
आत्मिक ऊर्जा और मूल प्रकृति में स्थित
सिर्फ वो ही देख पाएंगे
जिनके लिए आत्मानुभूति
समय व्यतीत करने का एक साधन नहीं
आत्मानुभूति कोई फैशन या मनोरंजन की वस्तु नहीं
जिसमें तुम अपनी रुचियों और
कल्पनाओं के आधार पर
अपनी मनोवांछित भावनाओं के हिसाब से रमो
दिव्यता में रहना है तो सदा सुमिरन में रहो।

  • प्रणाम मीना ऊँ

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