दिव्यता पाने की कोई तकनीक नहीं। सब अपने-अपने हिसाब से बाहर ढूँढ़ते हैं कोई ऐसी जादुई विद्या जो एकदम ऊपर पहुँचा दे पूर्ण ज्ञान दे दे पूर्णता दे दे पूर्ण आनन्द दे दे।
जिन्होंने यह आनन्द पाया भी है, वो भी पूरा नहीं समझा सके और जैसे उन्होंने पाया अगर बता भी दिया तो वो उनका अपना ही तरीका है। जब तक पुस्तकें लिखी जाती हैं छपती हैं समय आगे बढ़ चुका होता है। पुस्तकों से तकनीकों से सत्यता की पुष्टि होती है सत्यता की मोहर लगती है बस, सत्य मिलता नहीं है। सत्य मिलता है अपने ही पुरुषार्थ से
एक निश्चय वाली बुद्धि से
सांसारिक उत्तरदायित्वोंं दुखों के और होते हुए भी
स्पष्ट चेतना से किसी के ना कटघरे में होना
ना ही कोई नकारात्मकता
पूर्ण सकारात्मकता ही मार्ग है।
यही सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ