दर्द का सलीब

मैंने सबका सलीब ढोया है
मैंने सबका दर्द भोगा है पूरा का पूरा
तुम लोगों ने तो टुकड़ों-टुकड़ों में भोगा है
सिर्फ एक-दो तरह का
मैंने हर तरह का दर्द भोगा है
सबका सलीब ढोया है
मैं तुम सबका दर्द जानती हूँ…हूँ न
इसलिए कि जो ऊँ तुम्हारे अन्दर है
वही तो मेरे अन्दर भी है
तुमसे मिल गया है समा गया है
समाहित होकर ही जाना जा सकता है
कि तुम तो वही हो जो मैं हूँ
और ना मैं हूँ न तुम हो…
अब वो ही वो तो है
वही तो है केवल सच सिर्फ सच
मेरा तुम्हारा सबका सच प्यार से प्यारा सच
बस सच ही सच
जिसे सिर्फ शत-प्रतिशत पूर्णरूप से
सच होकर ही जाना जा सकता है
पाया जा सकता है ढूँढ़ना नहीं है
ढूँढ़ना नहीं होता बस पाना होता है
यही सत्य है – यहीं सत्य है !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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