हे मानव !
तूने अपनी बुद्धि और ज्ञान का सारा का सारा विकास अपने चारों ओर की वस्तुओं को अपने ही मनोनुकूल बनाने में लगा दिया है। आश्रमों व तीर्थों में भी जो कुछ तेरे मन की खुशी दे, तन को सुख और आराम दे दिमाग को शान्त करे वही ढूँढ़ता है। जैसे कोई बाहरी उपाय ही तेरी इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर दे और तुझे कोई विशेष श्रम और आध्यात्मिक उपक्रम न करना पड़े। कोई शार्टकट अथवा छोटा सुगम मार्ग मिल जाए इसी जुगाड़ में बुद्धि चलती है।
तीर्थाटन को भी पर्यटन में बदल दिया है। अपना ज़मीर व आत्मा जगा सच्चाई समझ। अपनी प्रकृति और प्रभु की प्रकृति से छेड़छाड़ मत कर। तेरी सारी की सारी चतुराई धरी की धरी रह जाएगी जब प्रकृति का तांडव होगा और उसका प्रकोप सारी अपूर्णता बहा देगा। भारतीय संस्कृति जो वेदशास्त्रों के नियमों पर आधारित है व मानव उत्थान व कल्याण में सच्चे गुरु की तरह सहायक है। उसे तोड़-मरोड़ कर अपनी सुख-सुविधा के अनुरूप बनाने में ही सारी शक्ति लगा रहा है स्वयं को उसके अनुकूल बनाने के प्रयत्न से बचने के लिए।
अरे मानव ! तुझे ज़रा भी भान नहीं अपने आलस्य का। प्रकृति तो सबकी अम्मा है उसके भयावह थपेेड़े तुझे देर-सवेर यह सत्य समझने को विवश कर ही देंगे। पहले लोग अपने सांसारिक कर्त्तव्य कर्मों से निवृत्ति पाकर ही तीर्थों के दर्शनों व यात्राओं का विधान करते थे। अभी भी कुछ साधक इस पावन पर्व तीर्थाटन को मान्यतानुसार ही शान्ति व ज्ञान प्राप्ति का मार्ग समझकर अपनाते हैं। इस भाव से तीर्थाटन करने वाला कम से कम वस्तुओं के साथ जितना उसका शरीर संभाल सके अधिकतर यात्रा पैदल ही, हल्का खान-पान, चना चबैना या फल जो भी प्राप्त हुआ भोग लगा लिया, कोई विशेष शयनगृहों, एयरकंडीशंड कारों व स्वादिष्ट पकवानों की आवश्यकता नहीं। रास्ते में छोटी मोटी गुफाओं, आश्रमों या बस्तियों में स्थानीय लोगों से आत्मीयता बढ़ाते भाईचारे का संदेश देते योगियों, महात्माओं से सत्संग व आशीर्वाद पाते कई दिनों में आनन्दपूर्वक यात्रा धर्म निबाहना होता था। तीर्थाटन एक साधना है प्रकृति के सानिध्य में रहकर प्रकृति से एकत्व अनुभव करने की शरीर को कम से कम साधनों में भी स्वस्थ व संतुष्ट रखने की, मोह से मुक्ति, कैसे नाते रिश्तों से दूर भी खुश रहने की, राह में मिले पथिकों से भी अपनापन अनुभव करने की। न कि पिकनिक की तरह सबको लाद कर ले चलो जल्दी-जल्दी भागे-भागे गए खूब मौजमस्ती, ऐशोआराम मनोरंजन पर्यावरण से खिलवाड़ किया और वापिस आकर अहंकार कि हम भी हो आए हैं। कैसे-कैसे दान पुण्य किया। दर्शन हुए इसका गर्वपूर्ण बखान। हे मानव ! तीर्थों की गरिमा और महिमा समझ कर सही अर्थों में विधि विधान से तीर्थाटन आत्मिक उन्नति का उत्तम व सौन्दर्यपूर्ण साधन है अन्यथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ व खिलवाड़ का कोई औचित्य नहीं है। तीर्थाटन चिंतन-मनन, गतिशीलता व प्रकृति-प्रेम का प्रतीक है।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ