ज्ञान वर्षा

भाप उड़-उड़ मिलजुल बादल बनी
भूरी-सफेद-सलेटी परियाँ बनी-ठनी

भारी-भारी तरल जल
हल्का होता बन बादल
घुमड़े आकाश आकाश
पवन झोंकों पर सवार
गुनगुनाता गीत मल्हार
टकराता कोई सुपात्र जब
झूम-झूम बरसता तब
मन भर-भर खिलखिलाता
सब उँड़ेल हल्का हो जाता
यही है चिरन्तन नियम प्रकृति का
ज्ञान भरो उठो फिर हल्के हो जाओ
सदा उन्मुक्त विचरण करना
जहाँ-जहाँ नियति की हवा घुमाए
मिले जब कोई सुजान
निद्राजयी अर्जुन समान
नि:स्वार्थ ज्ञान वर्षा प्रेषित करना
तन-मन भिगो प्राण पोषित करना
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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