जीवन गति व आत्म-प्रवाहक

जीवन बहुत सौन्दर्यमय है जब तक आराम से चलता रहता है थोड़ा हँसकर, थोड़ा रोकर पर जब कोई बड़ी परीक्षा सामने आ खड़ी होती है तब हमारी अच्छाई और सच्चाई दोनों की परीक्षा होती है।

पर जैसे पढ़ाई की परीक्षा आने पर क्या होता है जिन्होंने खूब तैयारी की होती है उनके अन्दर एक उमंग-सी रहती है। हाँ, भय-सा भी होता तो है मगर वो व्यथित करने वाला नहीं होता और जिनकी तैयारी ठीक नहीं होती वो ही भयभीत विचलित व्यथित हैरान और परेशान होते हैं। ऐसी बात ही जीवन की भी होती है साथ-साथ तैयारी भी करते जाएँ तो परीक्षाओं का भय नहीं व्यापता और पास होने पर उन्नति होती जाती है और फेल होने पर और अधिक तैयारी का दृढ़- संकल्प। जितनी परीक्षाएँ उतना ही उत्थान अवश्यम्भावी है।

जीवन एक महायज्ञ है, हवन है जिसकी सफलता उसमें भाग लेने वाले सभी लोगों पर निर्भर करती है जैसे एक परीक्षा देने वाले या कमाने वाले या नौकरी के लिए इंटरव्यु, Interview, देने जाने वाले की सफलता में बहुतों का हाथ होता है। सही शिक्षा व आहार देने वाला, तैयारी का समय देने वाला, समय से पहुँचाने वाला, वहाँ का वातावरण बनाने वाला, परीक्षा लेने वाला, आर्थिक सहायता देने वाला आदि-आदि। यदि इतना सब न हो तो कैसे समय पर परीक्षा दे पाएँगे और पास भी हो पाएँगे।

ऐसे ही मानव के जीवन में जब परीक्षा आती है तो सबका समयानुसार सहयोग तभी मिलता है जब हमने कुछ पुण्य संचित किया हो। परीक्षा कभी-कभी बीमारियों के रूप में हमें बदलने के लिए आती है। जिसके कारण बीमारी आई उस जीवन शैली में बदलाव हेतु। पहले छोटे थप्पड़ फिर बड़ा थप्पड़ प्रकृति माँ लगाती है। सम्भलना होगा ही, नहीं तो अच्छी माँ की तरह संस्कार देने के लिए उसकी सजा भी भुगतने को तैयार रहो।

जब बीमारी, दुख या मुसीबत आती है तो प्रकृति प्रदत्त इन परीक्षाओं से निपटने के दो ही तरीके हैं। जब आपके शरीर यंत्र में शक्ति नहीं रहती और पूरी प्राणशक्ति खींचने का उद्यम करने में सक्षम नहीं होते तो बाह्य उपकरण आपको ऊर्जा संतुलित करके देते हैं। जैसे ट्राँसफॉरमर बिजली की उचित मात्रा का संप्रवहन करता है ताकि फ्यूज़ न उड़े।

हम सब पाँच तत्व के पुतले उन सबका अपना कर्म है, धर्म है और हमारा धर्म है उनका धर्म जानकर उनसे तारतम्य बनाए रखना ताकि शरीर की प्राकृतिक लयात्मक गति व सन्तुलन बना रहे। सन्तुलन व लय के संप्रवाहक हैं अंत:स्रावी हारमोन्स जिनसे लयात्मकता, Harmony, संतोलन बना रहता है। इनका सीधा-सीधा सम्बन्ध हमारे उद्वेगों से होता है। ये अन्त:स्रावी द्रव्य हमारी मानसिक स्थिति से प्रभावित होते हैं। इनके स्राव स्वत: ही रक्तप्रवाह में घुलकर अपने-अपने कार्य करते हैं।

जब कमजोर या कुंठित व्यक्ति का इन बीमारियों पर नियंत्रण नहीं रहता तो इनके संतोलन, Regulation, के लिए उसके पास ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो पूरी तरह से सन्तुलित हो। बीमारी में यदि किसी को कोई दवा इंजेक्शन द्वारा चाहिए तो क्या करते हैं? पूरे ध्यान से वो रसायन एक विशेष उपकरण सिरिंज से शरीर में धीरे-धीरे प्रवेश कराते हैं। एक महीन-सी सुई से पूरे ध्यान से शुद्ध किए हुए उपकरण से लयात्मक रूप से उतारा जाता है। इसी प्रकार एक पूर्णतया शुद्ध व पवित्र शरीर द्वारा सुई की नोक जैसे केन्द्रित ध्यान से धीरे-धीरे सुपात्र को ऊर्जा देने का विधान किया जाता है। यह कर्म शरीर संरचना को औषधि देने से कहीं अधिक कठिन होता है। इसमें अवचेतन या न दिखाई देने वाली सत्य संरचना से संपर्क साधना होता है। यही तो है एक सच्चे गुरु का धर्म-कर्म।

हमारे अंदर के पाँचों तत्वों में ही समस्त ऊर्जाएँ और शक्तियाँ निहित हैं, केवल उनसे तारतम्य बनाकर संपर्क साधने की साधना अपेक्षित है। यही है ऊर्जा का खेल, सच्चे आत्म-प्रवाहक, Spiritual healer, की कार्यप्रणाली जो मानव की भलाई के लिए साँई बाबा और ईसामसीह द्वारा धरती पर अवतरित की गई। इस कष्टहरणी व मुक्तकरणी ऊर्जा के साथ वो ही न्याय कर पाता है जिसके तन-मन का आत्मबल द्वारा पूर्णतया शुद्धिकरण हो गया हो। क्योंकि ऐसे आत्मवान मानव का ध्यान सुई की नोंक से भी अधिक पैना होकर अपूर्णता को पहचान उस तक ऊर्जा की अग्नि पहुँचाकर उसे भस्म कर देता है, लेज़र, laser, की तरह।

जाने-पहचाने व दिखाई देने वाले अंगों के बारे में तो विज्ञान सबकुछ जानता है मगर जो दिखाई नहीं देता उसका विज्ञान भी आत्म-प्रवाहक जानता है वो अदृश्य विज्ञान जिससे मानव का अस्तित्व भरा हुआ है और जीवन गति का कर्ता कारण है। आत्म-प्रवाहक से ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित हो तन-मन सबका शुद्धिकरण कर देती है। पर सच्चा आत्म-प्रवाहक कभी भी प्रकृति की कार्य-प्रणाली में बाधक नहीं होता। वो केवल ठीक होने की प्राकृतिक विधि को ऊर्जावान करता है ताकि ठीक होने की गति में व्यवधान न हो और यदि और किसी अन्य उपाय की आवश्यकता हो तो सहज उपलब्ध हो। आत्म-प्रवाहक काल को नहीं रोकताï; हाँ, काल के कष्टों व भयों से मुक्त कर शान्ति प्रदान कर आत्म-जागृति में अवश्य सहायक होता है।

सच्चे आत्म-प्रवाहक का आभामंडल ही सुख व शान्तिदायी है, पाप-कर्म विनाशक है और मुक्ति-पथ का मार्गदर्शक है। हे मानव! सच्चे आत्म-प्रवाहक को अपने मन से, बुद्धि से चलाने का यत्न कभी न कर अपितु उसके मन वाला हो जा क्योंकि उसमें प्रभु बसते हैं, प्रभुता का वास है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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