हे मानव! जान ले कि अब समय आ गया है गीता में कुछ और भी नया जुड़ने का और तूने तो अभी तक गीता को ही पूरा जानकर जीकर उसके अनुभव को नहीं जाना है तो आगे कैसे बढ़ेगी तेरी प्रगति। युग चेतना की वाणी है गीता, न प्रवचन न उदाहरण स्वरूप रोचक कथाएँ। प्रश्नों के सटीक सीधे उत्तर जो श्री कृष्ण ने वेद व शास्त्रानुसार जीवन जीकर उसी के अनुभव के आधार पर दिए हैं। गीता के अनुसार जीवन जीकर ही तो कुछ और नए प्रश्न बनेंगे जिनके उत्तर प्रकृति का तैयार किया कलियुग का उन्नत माध्यम अवश्य ही देगा और गीता में नए आयाम जुड़ेंगे।
गीता भी उसी को पूरी तरह समझ में आ पाएगी जिसने श्री कृष्ण के जीवन के दर्द व मर्म को पूर्णतया आत्मसात् कर समझा हो कि कितनी वैराग्य और कर्म की तपस्या के बाद वाणी गीता हो जाती है। गीता कहनी भी सुपात्र को ही होती है। दुर्योधन आदि को ज्यादा ज़रूरत थी बतानी। पर अर्जुन जो कि स्वयं ज्ञानी, ध्यानी, निद्राजयी महाबाहो आदि गुणों से युक्त था और सदा बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर की धर्म-नीति पर चलता था वह ही अपने प्रश्नों से गीता अवतरित करा पाया।
आज सबको प्रश्नों के उत्तर तो चाहिए मगर धर्म-कर्म कर, अपने पर काम करके समाधान प्राप्त करने के लिए नहीं। एक दिमागी कसरत की तरह अपने ही हिसाब से तोड़-मोड़ कर घुमा लेते हैं, और कभी-कभी तो गुरु के ज्ञान पर ही प्रश्नचिह्न लगाने के लिए प्रश्न करते हैं। उत्तर को सत्य-वचन जान, साधना के लिए कितने तैयार होते हैं। अर्जुन ने भी कहाँ कृष्ण का साथ दिया। युद्ध जीत अपने बंधु-बांधवों में ही रम गया। गीता के वचनों का प्रसार कहाँ किया। किसने माना व गुना गीता को। अगर करते तो द्वारका यूँ न उजड़ती, कृष्ण के ही वंशज यूँ पथभ्रष्ट न होते। यहाँ तक कि श्रीकृष्ण जैसे महान योगेश्वर की अन्त्येष्टि कहाँ कैसे शास्त्रानुसार हुई भी या नहीं यही स्पष्ट नहीं है। श्रीकृष्ण के मन का दर्द जान। वे तो सबको दिव्यता का रहस्य बताकर, मानव को भगवान होने की राह बता गए, पर आज सर्वत्र चारों ओर देखा जा सकता है कि गीता समझाने वाले कृष्ण मंदिरों की गद्दियों पर सजे हुए तथा राजसुख भोगते हुए स्वर्ग के, मोक्ष के टिकट बेच रहे हैं।
पूजा की रीतियों व शोभायात्राओं पर हजारों फूँकने की अपेक्षा यदि थोड़ी सी मेहनत अपने अंदर के सत्य को जानने में की जाए तो स्वत: ही कल्याण का मार्ग सुझाई देने लगेगा। अरे ओ मानव! जाग तुझे प्रकृति ने सारी वे क्षमताएँ दी हैं जो परमात्मा से योग करा दें। हाँ, वैसे तो आजकल सभी भगवान हैं पर इतनी अदम्य शक्ति सच्चाई की व अद्वितीय साहस किसमें है कि कृष्ण, क्राइस्ट व ओशो की तरह कह सके कि हाँ मुझमें ही है वह प्रभु तत्व, मेरे समर्पण में आओ।
यही है सत्य गीता जो आत्मा का काव्य है।
- प्रणाम मीना ऊँ