जय माँ शारदे

जय माँ शारदे

गुनातीत होने पर तेरी ही कृपा चाहिए। केवल सत्य से ही रीझने वाली, ना किसी के आगे ना पीछे, न धन से ना मान से ना ज्ञान के अभिमान से, स्पष्टता, पवित्रता व शुद्ध भाव के प्रकटीकरण की शक्ति देने वाली, सत्यम् शिवम् सुन्दरम् कलाओं की प्रेरणा व प्रश्रयदात्री। वाणी को वेद बनाने वाली तेरी आराधना सदा ही प्रिय हो।
पूर्ण समर्पण : पूर्णतया आधिकारिता की समाप्ति। सम्पूर्ण लेन-देन ऊर्जा का, ना कम ना ज्यादा, पूर्णता से आदान प्रदान। मानव की प्रतिक्रियाओं से उसके उत्थान का पता चल जाता है, प्रतिक्रिया नहीं देनी है। क्रियाशील रहना आवश्यक है, सदा कर्म करना है। जैसे श्रीकृष्ण ने धैर्य से शिशुपाल की 99 गालियाँ शोभापूर्ण ढंग से सुन ली फिर कर्म किया सुदर्शन चक्र, सत्य की शक्ति का प्रतीक, चलाकर उसका शिरच्छेद, अहम् का प्रतीक, काट दिया। केवल एक सत्यात्मा ही सही समय पर सही कर्म का प्रतिपादन कर सकता है। यही माँ शारदे का प्रताप है।

  • प्रणाम मीना ऊँ

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