छवि

ये छवि क्या है !

अहम् से उत्पन्न व्यक्तित्व का प्रदर्शन। लोगों को औरों के सामने अपनी छवि की इतनी चिंता क्यों रहती है! अपने रिश्तेदारों के सामने अपने दोस्तों के सामने अपने कार्यक्षेत्र में सम्पर्क में आए लोगों के सामने।

कोई क्या कहेगा छवि न खराब हो जाए, यही चिंता रहती है। जितना ही प्रयत्न करता है जितनी ही चिंता करता है मूर्ख मानव, उतनी ही छवि की चिंदी चिंदी उड़ जाती है। जब ज़रा सी बनावट से कसी जिंदगी में ढील आ जाती है तो… तो… तो क्या बचता है! कुंठाग्रस्त जीवन तनावपूर्ण जीवन रोगी जीवन-विषाद असंतुष्टि तनाव और जीवन को अजीर्ण करने वाली व्याधियाँ। यही सब कुछ छवि को बचाते-बचाते, दूसरों की कसौटी पर खरे उतरने की मूर्खतापूर्ण चेष्टाओं की भूलभुलैया में वास्तविक आनन्द से दूर बहुत दूर हो जाता है बनावट की जि़दगी उधार की जि़दगी दूसरों से मनवाई हुई जि़दगी जीते-जीते मूर्ख मानव !

अरे मूढ़ तुझे अपनी छवि ठीक रखनी है सिर्फ एक परम शक्ति के सामने बस! वहाँ कोई बनावट न चलेगी। बस मनसा वाचा कर्मणा – सत्य :-
सत्य ही रिझाएगा उस परम सत्य को
वहाँ छवि ठीक रख सारे ब्रह्माण्ड में तेरी छवि बन जाएगी, सारा विश्व तेरी छवि का कायल हो जाएगा। युगों युगों तक उस छवि की छवि रहेगी। औरों को भी प्रकाशित करती मार्ग दिखाती रहेगी।

कहना यह नहीं कि सांसारिक छवि की चिंता ही न करो! करो, मगर अभिनय की तरह विरक्त होकर कुछ भी व्यापे नहीं।
और कभी लगे छवि खंडित भी हुई तो ठेस न लगे स्वाभिमान न मरे सत्यमेव जयते !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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