चिंतन-मनन से उत्कृष्टता प्राप्त कर

चिंतन-मनन से उत्कृष्टता प्राप्त कर

हे मानव !
उठ और बन एक उत्कृष्ट मानव, जो हो अनन्यावस्था में स्थित। सच्चे मानव मन की प्राकृतिक अवस्था ही सच्चा चमत्कार है। जो इतना सरल अद्भुत व पारदर्शी होता है कि लोग उसे समझ ही नहीं पाते। उनकी दृष्टि उसके आर-पार हो जाती है और वह उसके सत्य से वंचित रह जाते हैं। मानव की सत्यमयी सहज स्थिति में ही प्रभु के संदेश अवतरित होते हैं। यह स्थिति प्राप्त होगी सिर्फ शुद्ध पवित्र, स्पष्ट व चैतन्य चेतना के द्वारा ही।

तंद्रा से जागो-अपने अंतर्मन में झाँको। एक सत्यमय दृष्टा की भांति अब सम्बन्धों, घटनाओं स्थितियों व परिस्थितियों से छल-बल की चतुराई से निबटने का समय गया। इन सबको अब सत्यता से परखना होगा प्रत्येक प्रक्रिया व कर्म को प्राकृतिक नियमों पर तोलना होगा अन्यथा जिन परिस्थितियों को तुमने जोड़-तोड़कर संभाल लिया वे कभी भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगी। इनका सामना कर इनमें छुपे संदेश को अपने उत्थान हेतु जानने का यत्न करो।

ध्यान द्वारा अवचेतन मन रिक्त करो- किसी भी बाहरी पद्धतियों या अप्राकृतिक विधियों व तकनीकों से चेतना को दबाना काम नहीं आएगा। अपने आपसे प्रश्न करो- क्यों कुछ को चुना, कुछ को छोड़ा? क्यों स्पष्टीकरण व सामना करने को टाला? कहीं उसमें कोई भय, आलस्य, स्वार्थ या अहम् तो निहित नहीं था। अवचेतन मन में दुविधा या संशय का कणमात्र ही कष्टों का कारण बन जाता है। भय और कुंठा (फ्रस्ट्रेशन) दुर्घटना और दुर्भाग्य को ही आमंत्रित करते हैं, यही प्रकृति का नियम है।

अब समय विषाद का नहीं सँवारने का है दिव्यता की शक्ति द्वार पर दस्तक दे रही है उठो, ग्रहण करो। इस वर्ष मंगल ग्रह पृथ्वी के निकटतम आया ध्यान और वरदान देने। अब 31 दिसंबर 2003 की रात शनि ग्रह पृथ्वी के निकटतम आया जिसका धर्म ही न्याय स्थापित करना है। अगर मानव अपनी स्वार्थी बुद्धि की सोच से सत्य-कर्म में व्यवधान डालेगा तो अनचाहे तत्व उसकी रूपान्तरण की प्रगति में बाधक होंगे।
ओ मानव काया तेरी भूली-भटकी
जिह्वा बस और ही और रटती
क्यों न अपने को सत्य की कसौटी पर कसती
कब तक रहेगी आत्मा यह दुख भार सहती
ओ मूर्ख कुछ तो कर जतन
जो मिल जाए सत्य दर्शन।

यही है सत्य !!

  • प्रणाम मीना ऊँ

प्रातिक्रिया दे