क्या कहूँ

समय भाग रहा है
मन जान रहा है
अन्दर कुछ भान रहा है
क्या नया सवेरा पास है
यही तो जीने की आस है
क्या यह मेरी श्वांस है
प्रभु तो साथ है
अब न बाकी प्यास है
अब न बाकी प्यास है

सब सुहास है प्रकाश है
नए युग का शिलान्यास है
खुद सत्य रूप हो जाओ तो सब
या तो सत्य दिखाई देता है
या लगता सब असत्य है
बहुत प्यारा लगता है सफर
जब तुम साथ होते हो मनमोहन
जब अलग दिखाई देते हो तो
भक्ति ही भक्ति सुझाई देती है
प्रतिशत तो बचता ही नहीं
सब पूर्णरूपेण ही होता है
जप तप कर्म देखना दिखाना
भक्ति ही भक्ति

शायद तुम्हारा यही तरीका है शक्ति देने का
शक्ति देने का तुम्हारा यही तरीका है
मनमोहन भक्ति दे देते हो दूर खड़े हो जाते हो
दृष्टा बनकर
दृष्टा बनकर
ताकि भक्ति में आँसू बहा-बहाकर तुम्हें रिझाऊँ
तुम्हें रिझाऊँ
आँसुओं की धारा उबल-उबल कर
पता नहीं क्या-क्या धो जाती है?
सारा अन्तर्मन धुलता है
अवचेतन मन धुलता है
सब कुछ भरा हुआ फिर से खाली हो जाता है
जानती हूँ क्यों सारा कुछ
बारी-बारी खाली करा लेते हो
जरूर तुम्हें कुछ नया भरना होता है
बड़े चतुर हो ओ कन्हाई
ओ कन्हाई
खुद ही खाली करना चाहते हो
और विधि का विधान भी कर देते हो
पता नहीं लगता क्या-क्या करते हो
पर अब मैं जान गई हूँ तुम्हारी लीला
क्या मीना ही मिली पूरे संसार में
अपनी सारी कलाएँ दिखाने को
अनछुए मापदण्ड आजमाने को
क्या होती है प्रत्येक क्रिया की
समग्रता समग्रता समग्रता
पूर्णता पूर्णता पूर्णता
प्रत्येक भाव की पूर्णता

इंसान जब टुकड़ों में जीता है
तो कुछ अंशों में ही तो झेलता है
तो कुछ अंशों में ही तो झेलता है
पर फिर भी कितना व्याकुल हो जाता है
ज़रा-सा दुख, ज़रा-सी पीड़ा, ज़रा-सा भाव
कितना विचलित करता है
उसे कितना कष्ट देता है
क्योंकि वह नहीं जानता कि
शत प्रतिशत पूर्ण पीड़ा, पूर्ण कष्ट क्या होता है
पूर्ण शत प्रतिशत कष्ट, कष्ट नहीं रहता
कुछ और ही हो जाता है
एक अजीब-सा स्थिर भाव

जैसे पूर्ण शत प्रतिशत खुशी में भी यही भाव
यही स्थिर भाव एक अजीब-सा स्थिर भाव
हर भाव चाहे कष्ट का हो या आनन्द का
अपनी पूर्णता में
एक अनन्य भाव में परिवर्तित हो जाता है
उसका सुख या दुख में
अनुभव केवल तभी तक है
जब तक प्रतिशत है, नापा जा सकता है
कि इतना-इतना दुखी
इतना-इतना खुशी
इतना-इतना सुखी

शत प्रतिशत पूर्णता की स्थिति में
इतना-उतना कुछ नहीं रहता
बस रहता है
एक ही भाव कृतज्ञता का
केवल कृतज्ञता का
आँखों में कृष्ण बसे
कहो कृष्ण कैसे फँ से?
जिसने बँधना न जाना उसे बाँध लिया
बाँध लिया मनु को कैसे कहूँ क्या कहूँ
यही तो सत्य है मीना का
यही सत्य है !!
यहीं सत्य है
!!

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