मैं मीना प्रकृति की पुत्री
प्रकृति की ही अनुकृति
न बँधी थी न बँध रही हूँ
न बँध के रहूँगी
मैं खुशबू का झोंका
मस्त पवन की बहार
बहती नदी का बहाव
एक लहर किनारे तक पहुँच ही दम ले
समुद्र में समा फिर बादल बन चल दे
कौन बाँधेगा मुझे
प्रकृति की चाल को
शायद कोई
हिमालयी चट्टान जैसे व्यक्तित्व वाला
निर्बाध अनन्य निश्छल प्रेम पगा
कृष्ण चेतना वाला
जो मुझे बाँधकर घेरकर
साफ पानी की झील बना दे
जो सदा नीलमणि-सी चमके
आँख के तारे-सी दमके
आँख के तारे-सी दमके
सबको प्रकृति के स्वरूप का कराए अमृतपान
देकर मानव को अनन्त प्रेम धाराओं का दान
जो बाँधेगा बहती मीना को
वही देगा मानसरोवर धरा को
एक पावन पुण्य देवभूमि जैसे
स्वर्ग धरा पर जन्नत जमीं पर
मीना के मन वाली
होगा कोई अनन्य
जो जानेगा मीना का मन
धरूँ ध्यान बाँटू ज्ञान
करूँ दूर पूर्ण अज्ञान
वेदों का ज्ञान बने विज्ञान
सत्य महान भारत का प्राण
सत्य प्रणाम
सत्यमेव जयते
यही सत्य है
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ