कोषाणु का तत्व ज्ञान

कोषाणु का तत्व ज्ञान

हे मानव!
एक कोषाणु या सेल दूसरे कोषाणु या सेल से पूर्णतया विकसित होकर ही विभक्त होता है। फिर भी दोनों पूर्ण ही रहते हैं आकार-प्रकार में कोई भिन्नता नहीं होती। विभक्त होने का सूक्ष्मतम क्षण कोई साइंस या विज्ञान नहीं पकड़ सकता। वह तो ब्रह्माण्डीय चेतना (कॉस्मिक कॉन्श्यसनेस) का ही निर्णय होता है। एक सेल एक समय में एक ही को पूर्ण करने में पूरी शक्ति व ध्यान लगाता है। अगर मदर सेल चाहे कि मैं ही अपना आकार बड़ा कर सारे शरीर को चला लूँ अपनी सत्ता का विस्तार करता रहूँ तो, क्या होगा? कितनी सुंदर व्यवस्था है सेल पूर्णता पाकर जीता है और मानव पूर्णता पाकर मरता है पूरा होता है यही प्रकृति का चिरंतन सत्य है।

प्रवचनों में हजारों की भीड़, पर सब सुन सुनाकर अपनी राह लेते हैं ऊपर से कौन अच्छा बोलता है कौन अधिक ज्ञानी है कहाँ प्रसाद व पंडाल बढ़िया था इसकी व्याख्या अलग से करते हैं। भैंस के आगे बीन बजाने से क्या लाभ? गुरुओं का भोला सा उत्तर होता है कि इतनों में शायद किसी एक की ही ज्योति जल जाए। तो फिर क्यों नहीं प्रकृति के नियम के अनुसार सेल की तरह एक पर ही काम किया जाए। इतने वर्षों से प्रवचनों, यौगिक, आध्यात्मिक पद्धतियों, पंथों व मार्गों का खूब प्रचलन हो रहा है पर एक भी राम, कृष्ण, ईसा, मूसा, बुद्ध, कबीर, नानक, विवेकानंद या गाँधी बना पाए क्या?

अरे, एक ही उदाहरणस्वरूप पूर्ण मानव बना देते तो सेल की तरह एक से दो, दो से चार ऐसे ही द्विगुणित होकर इस प्रकार फैल जाते जिस प्रकार मानव अपने सत्य रूप में पृथ्वी पर था। तभी तो वेद अवतरित हुए। मिलावट तो बाद में आती ही चली गई। मिलावट दूर करनी है तो पहले एक को तैयार करो। प्रकृति भी पहले एक ही उन्नत जीव तैयार करती है फिर वह स्वयं ही अपने ही स्वरूप के अनुरूप संख्या बढ़ा लेता है। अपने युग में सबसे उन्नत जीव ही अवतार कहलाता है।

पृथ्वी जब अस्तित्व में आई तो काई जैसे पदार्थों के कोषाणुओं की प्राकृतिक उत्थान प्रक्रिया, अमीबा आदि से होकर लाखों वर्षों में आँखों से अपने बच्चों को संचालित करने वाली मछली बनी जो मत्स्यावतार कहलाई। इसी प्रकार जल थल पर समान रूप से रहने वाला प्रथम जीव कछुआ जो ध्यान से अपने बच्चों को मार्गदर्शन देता है कूर्मावतार कहलाया आदि-आदि। तो प्रत्येक उन्नत मानव का धर्म है अपने जैसा ही उन्नत मानव तैयार करना जो समयानुसार उसमें कुछ नया जोड़ प्रकृति की प्राकृतिक उत्थान प्रक्रिया का नियम प्रशस्त करे यह नियम प्रत्येक क्षेत्र के लिए है चाहे वह धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक या वैज्ञानिक हो ताकि सत्य-कर्म की तपस्या से तैयार किया हुआ संस्थान सुपात्र के हाथों में ही जाए न कि जायदाद की तरह झगड़े का कारण बने।

विवेकानंद जी ने भी यही कहा- ‘मुझे दस सच्चे नौजवान मिल जाएँ तो दुनिया का नक्शा ही बदल दूँ- प्रणाम का मानना है-
जहाँ दूरदर्शिता (VISION) सालभर का है तो फूल बोओ
जहाँ दूरदर्शिता दस साल की है तो पेड़ रोपो
जहाँ दूरदर्शिता युगों की है तो सच्चे मानव तैयार करो।
सुनो समय की पुकार, प्रकृति की युग चेतना की गुहार,
यही है सत्य

  • प्रणाम मीना ऊँ

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